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23 अक्तूबर 2011

राहुल गांधी जल्द ही कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष !


सबसे बड़ी खबर। राजधानी में चर्चा है कि राहुल गांधी जल्द ही कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष हो सकते हैं। हमें यह खबर कहां से मिली, यह हम नहीं बता सकते। लेकिन अगर आपको सबूत चाहिए, तो कांग्रेस के किसी भी नेता की चाल-ढाल देख लीजिए। सब अपनी रिपोर्ट सोनिया के साथ-साथ एक कॉपी राहुल को भी भेजने लगे हैं। बताया यह गया है कि सोनिया गांधी को इलाज के लिए विदेश जाना पड़ सकता है और वह नहीं चाहतीं कि पिछली बार की तरह पार्टी फिर नेतृत्वविहीन हो जाए, जब अन्ना हजारे का मुद्दा संकट बन चुका था और कांग्रेस की तरफ से अंतिम फैसला लेने वाला कोई नहीं था। माना जा रहा है कि कार्यकारी अध्यक्ष का पद शपथ ग्रहण समारोह की दिशा में एक और कदम हो सकता है।

असली बिग बॉस

टीवी वाला बिग बॉस कौन है? वही जिसका चेहरा नहीं दिखता, आवाज सुनाई देती है और बच्चे लोग मशीन की तरह आज्ञा का पालन करते हैं। अब हम आपको बताएं कि एक बिग बॉस भाजपा में भी है। दरअसल नवजोत सिंह सिद्धू टीवी वाले बिग बॉस में जाने ही वाले थे। लेकिन पंजाब में चुनाव सिर पर हैं और भाजपा नहीं चाहती थी कि ऐसे में सिद्धू कोई और प्रयोग करें। लिहाजा भाजपा के बिग बॉस ने वीटो कर दिया। बच्च लोग को आज्ञा का पालन करना पड़ा। इसे कहते हैं असली जिंदगी का बिग बॉस।

फोटो-बंधन बनाम गठबंधन

गठबंधनबाजी बाकी हर जगह चलती है, लेकिन फोटोबाजी में नहीं चलती। आपको दूरसंचार विभाग के विज्ञापनों में करुणानिधि की फोटो याद होगी? बेचारे। दरअसल केंद्र सरकार के विज्ञापनों की पहचान ये होती है कि उसमें मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी का बड़ा-सा फोटो लगता है और हैसियत बताता हुआ एक छोटा-सा फोटो संबंधित विभाग के मंत्री का होता है। लेकिन पश्चिम बंगाल में रेलवे के एक कार्यक्रम के विज्ञापन में एक फोटो रेल मंत्री का छपा और उससे बड़ा फोटो ममता बनर्जी का छपा। हैसियत बताता हुआ। उनकी भी हैसियत, जिनकी फोटो रेलवे ने नहीं छापी।

टॉयलेट विकास मंत्रालय

एक टॉयलेट में ताला लगा हुआ है। नौबत बदबू फैलने की है और दो मंत्रालयों में ठनी हुई है। बात है दिल्ली के शास्त्री भवन की। पहली मंजिल। सीढ़ियों के एक तरफ सूचना प्रसारण मंत्रालय है और दूसरी तरफ मानव संसाधनों का तसल्ली बख्श विकास किया जाता है। बहरहाल इस विकास के पहले पड़ता है एक पुरुष शौचालय, जो प्रेस सूचना वालों के पास हुआ करता था। अचानक एक दिन दूसरे मंत्रालय ने दावा किया कि इस पुरुष शौचालय का प्रयोग मानव संसाधनों के विकास का मामला है। बात बढ़ती गई और ठेकेदार ने टॉयलेट में ताला ठोंक दिया। बाबुओं से लेकर पत्रकारों तक सब परेशान हैं। लेकिन अब बात आसानी से बनने के आसार नजर नहीं आ रहे हैं। हो सकता है, इसके लिए अलग मंत्रालय बनाना पड़े।

ये रथी, वो महारथी

आडवाणी का रथ जैसे ही मध्यप्रदेश पहुंचा, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान उस पर सवार हो गए। शिवराज लगातार रथ पर ड्राइवर वाली सीट पर माइक थामे रहे और तीन दिनों तक सरकार के कामकाज का जी-भरकर बखान किया। किसी ने आडवाणी से कह ही दिया कि यह यात्रा आपकी है या शिवराज की। आडवाणी ने कहा कि मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री का सिक्का चले, यह स्वाभाविक ही है।

बड़े काम की सवारी

एक और रथी हैं। बेचारे वैसे तो रथ पर बैठने के लिए अनमने थे, लेकिन जब बैठा ही लिए गए, तो बड़े काम के आदमी साबित हुए। छपरा, बिहार में आडवाणी की शानदार सभा हुई। लौटते समय राजीव प्रताप रूडी आडवाणी के साथ रथ में बैठने में सकपका रहे थे। लेकिन बैठा लिए गए। पटना के रास्ते में अरुण जेटली और सुषमा स्वराज की तबियत खराब होने लगी। रूडी ने फौरन कहीं से एक कार मंगाकर उन्हें अस्पताल भिजवाने की व्यवस्था की। बात कुछ गंभीर नहीं थी, लेकिन सब कह रहे थे कि कितना अच्छा हुआ, जो रूडी साथ में थे।

महारथियों की फौज

और रथ जब वाराणसी पहुंचा, तब महारथियों और पैदल सिपाहियों का अंतर समझ में आया। वाराणसी की सभा में महारथियों की भारी फौज थी। कलराज मिश्र थे, जिनकी अपनी रथयात्रा शुरू हुई थी। उमा भारती थीं, प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही थे, स्थानीय सांसद मुरली मनोहर जोशी थे- और सारे महारथी मंच पर विराजमान थे। हालत यह थी कि सामने या नीचे बैठने के लिए ज्यादा लोग नहीं बचे थे। जो थे, वे भी बस अनमने ही थे। वाराणसी के इस फ्लॉप शो से शायद महारथियों को नजर आया हो कि उत्तर प्रदेश में भाजपा कितने पानी में है।

उदास सरकार

जो दिव्य ज्ञान आडवाणी को वाराणसी पहुंचने पर प्राप्त हुआ, यूपीए के मंत्रियों को भारत भूमि पर पैर रखते ही प्राप्त हो जाता है। यही कि आसार ठीक नहीं हैं। एक मंत्रीजी विदेश यात्रा पर गए। बहुत भालो-भाशी बातें कही और सुनी। इंडिया ये इंडिया वो। लेकिन इंडिया में उतरते ही सारा शाइनिंग इंडिया जमीन पर आ गया। एक मंत्री के निजी चिकित्सक मित्र ने कहा- सरकार कोमा में है और लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर चल रही है। कई वरिष्ठ मंत्री बेहद उदास चल रहे हैं। क्या करें और क्या न करें? बड़ा सवाल है।

रेड्डी स्टाइल

लेकिन इन मंत्रियों के लिए अच्छी बात यह है कि लगभग सारे मंत्री स्वतंत्र निकायों की तरह हैं। लिहाजा सरकार में एक साथ कई-कई राजनीतिक संस्कृतियां पनप रही हैं। पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी पुराने सोशलिस्ट हैं। अब कांग्रेसी हो गए हैं, लेकिन पुराना स्टाइल कई बार जोर मार देता है। खुलकर बोलते हैं, यहां तक कि रुपए की कीमत गिरेगी, ये भी बोल डालते हैं। और तो और, बड़ी कंपनियों की भी नहीं सुनते। उस कंपनी की भी नहीं, जिसका नाम सीएजी रिपोर्ट में बार-बार आया है। रेड्डीजी उससे खुदाई करवाकर मानेंगे, चाहे कंपनी के मुनाफे की कब्र ही क्यों न खुद जाए।

चूं-चूं का..

इस हंड्रेड फ्लॉवर ब्लूम संस्कृति से मोंटेक सिंह आहलुवालिया भी परेशान हैं। योजना आयोग के मुरब्बे में कई मसाले हैं और मीडिया में पूरे आयोग के मसाले के तौर पर पेश होते हैं। विचार भाई लोगों के होते हैं, बदनाम पूरा आयोग और खुद मोंटेक होते हैं। लिहाजा उन्होंने पूरे ३२ टके का नतीजा ये निकाला है कि आयोग के जिस भी सदस्य या उपसमिति का जो मसाला मीडिया में पेश हो, सिर्फ अपने तौर पर हो, खुद को पूरे मुरब्बे का जायका न बताए। देखते हैं ये आइडिया कितना बिकता है।

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