नई दिल्ली. दिल्ली विश्वविद्यालय एकेडमिक काउंसिल की ओर से ‘थ्री हंड्रेड रामायण’ के विवादित हिस्से को पाठ्यक्रम से बाहर करने के फैसले पर अब कैम्पस में ही ‘महाभारत’ शुरू हो गया है। एक ओर जहां वामपंथी शिक्षक व छात्र संगठन इसे फिर से पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए रखने की वकालत कर रहे हैं, वहीं एबीवीपी इसे हटाए जाने को छात्र हितैषी व संस्कृति को बचाने वाला कदम करार दे रही है।
एकेडमिक काउंसिल की बीती नौ अक्तूबर को सम्पन्न हुई बैठक में ‘कंकरेंट कोर्स कल्चर इन इंडिया : ए हिस्टोरिकल प्रोसपेक्टिव’ में शामिल एके रामानुजम के लेख ‘थ्री हंड्रेड रामायण’ को पाठ्यक्रम से हटाकर रोमिला थापर व आर आरएस शर्मा के लेख को जगह दी गई है, लेकिन सोमवार को विभिन्न वामपंथी छात्र व शिक्षक संगठनों ने इस फैसले के खिलाफ आर्ट्स फैकल्टी में विरोध दर्ज कराया।
वहां से शुरू हुए विरोध मार्च के तहत छात्र व शिक्षक कुलपति कार्यालय तक गए और इस दौरान उन्होंने अपनी शैक्षणिक स्वतंत्रता की दुहाई देते हुए इस लेख को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए रखने की मांग की। अपनी इसी मांग को लेकर छात्र-शिक्षकों ने एक ज्ञापन भी कुलपति को सौंपा। इसके साथ ही, विरोध के लिए उतरे शिक्षकों ने इस मुद्दे पर मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय की चुप्पी पर भी सवाल खड़े किए।
उधर, लेख के पक्षधरों से परे कैम्पस में लगातार इसका विरोध करते आ रहे छात्र संगठन एबीवीपी ने प्रशासन के इस फैसले को जायज ठहराया है। एबीवीपी के प्रदेश मंत्री रोहित चहल ने बताया कि यह लेख वर्ष 2006 में पाठ्यक्रम का हिस्सा बना था और संगठन ने 2008 में इसका विरोध भी इतिहास विभाग में किया था।
उन्होंने कहा कि तब मामला इस कदर उबला था कि पहले संसद और फिर उच्चतम न्यायालय की ओर से इस लेख की प्रमाणिकता परखने और इसे पाठ्यक्रम में शामिल करने या न करने पर एकेडमिक काउंसिल में फिर से विचार करने का निर्देश दिया गया था। बस, उसके बाद औपचारिक प्रक्रिया के तहत नौ अक्तूबर को इसे पाठ्यक्रम से अलग कर दिया गया है, जो एकदम सही निर्णय है और एबीवीपी इसका समर्थन करती है। चहल ने स्पष्ट किया कि कैम्पस में कुछ वामपंथी फिर से इस लेख को पाठ्यक्रम में शामिल करने की वकालत कर रहे हैं, जिसका संगठन बढ़-चढ़कर विरोध करेगा।
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