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31 अक्तूबर 2011

जुड़वां बहनों का दर्द : चोट एक को लगती है, दर्द दूसरी को होता है


सरायकेला. चोट तुझे लगती है, दर्द मुझे होता है। इस हिन्दी फिल्मी गीत के उक्त मार्मिक प्रसंग को सरायकेला की दो जुड़वां बहनें चरितार्थ कर रही हैं। दो दिल एक जान की तरह जीवन जी रही छह वर्षीया ईशा केराई एवं निशा केराई मुलत: कुचाई प्रखंड अंतर्गत बिजार ग्राम की रहने वाली हैं। गांव में ही इनका जन्म 19 अप्रैल 2005 को हुआ था।

इनकी माता संजू देवी एक गृहिणी हैं, जबकि इनके पिता मनमोहन सिंह मुंडा सरायकेला स्थित प्रखंड संसाधन केंद्र में सरकारी कर्मी के रूप में कार्यरत हैं। निवास कैंपस में ही स्थित बालक मध्य विद्यालय की कक्षा दो में अध्ययनरत दोनों जुड़वां बहनें अपने विद्यालय परिवार में छुटी बड़ी के नाम से प्रचलित हैं। दोनों शिक्षा अध्ययन से लेकर सभी विद्यालय आधारित कार्यक्रम में संयुक्त रूप से बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेती हैं। विद्यालय के प्रधानाध्यापक रमानाथ होता बताते हैं कि किसी भी कार्यक्रम में बहन भाग लेने को तैयार नहीं होती हैं।

दोनों साथ में ही कोई भी कार्यक्रम में हिस्सा लेती हैं। मां संजू देवी कहती है कि दोनों बहनें किस्से कहानियों में या जुड़वां बहनों पर बनाई गई फिल्म की भांति ही हैं। दोनों बहनों को भूख लगती है, तो एक साथ खाती हैं। नहाना धोना, खेलना कूदना, सोना उठना सब एक साथ होता है। आंशिक शारीरिक परिवर्तन के बावजूद दोनों की पहचान कठिन है।

इसके लिए दोनों को अलग अलग रंग के कपड़े पहनाने पड़ते हैं। इनका रूठना और झगडऩा भी माता पिता के लिए किसी महासंग्राम से कम नहीं होता है।

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