
जीवन का सत्य यह भी है कि इंसान धर्म से परे नहीं हो सकता। ईश्वर में विश्वास रखने वाला आस्तिक ही नहीं, बल्कि ईश्वर को नकारने वाला नास्तिक भी जीवन से जुड़े कर्तव्य और जिम्मेदारियों के रूप में धर्म पालन करता ही है। किंतु फिर भी धर्म शब्द सुनते ही अनेक लोग कोई खास या भारी समझ का विषय मान धर्म से जुड़ी बातों से दूर या अलग रहना पसंद करते हैं।
दरअसल, धर्म को सबसे आसान तरीके से समझ जीवन में उतारना है तो बस इतना समझना ही काफी है कि जो बातों और व्यवहार किसी इंसान को स्वयं के अनुकूल नहीं लगते, वह दूसरों के साथ भी न करे। बेहतर जीवन वही माना गया है, जिसके द्वारा दूसरों का जीवन सार्थक बनाया जा सके।
ऐसी ही पवित्र भावनाओं से धर्म पालन के लिए जीवन में कुछ खास लोगों की सेवा या पालन-पोषण को सभी सुखों का सूत्र माना गया है। फिर चाहे आप धार्मिक विधानों से परे ही क्यों न रहें। जानते है किन-किन लोगों का पालन-पोषण स्वर्ग-सा सुख देता है?
लिखा गया है कि -
माता पिता गुरुर्भ्राता प्रजा दीना: समाश्रिता:।
अभ्यागतोतिथिश्र्चचाग्रि: पोष्यवर्गा स्वर्गसाधनम्।।
भरणं पोष्यवर्गस्य प्रशस्तं स्वर्गसाधनम्।
भरणं पोष्यवर्गस्य तस्माद् यत्नेन कारयेत्।।
अर्थ है कि माता, पिता, गुरु, भ्राता, प्रजा या अधीन जन, गरीब, दु:खी, शरणागत, अभ्यागत, अतिथि और अग्रि का यथासंभव भरण-पोषण करना स्वर्ग की राह पर बनाते हैं। यह श्लोक मूल रूप से व्यावहारिक जीवन के लिये भी निस्वार्थ सेवा और परोपकार द्वारा सुख-शांति पाने के सूत्र बताता है।
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