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03 अक्तूबर 2011

कागजों पर गरीब मुक्‍त भारत बनाना चाहती है सरकार?

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा देकर बताया कि सरकार की नजर में 32 रुपये रोज खर्च करने वाला व्‍यक्ति गरीब नहीं है। तुर्रा यह कि पहले शहर में गरीबी रेखा से ऊपर वालों के लिए रोजाना के खर्च का सरकारी हिसाब सिर्फ बीस रुपये था। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद सरकार ने इसे बढ़ाकर 32 रुपये किया। लेकिन मीडिया और तमाम हलकों में इसकी आलोचना होने के बाद सरकार एक बार फिर यह पैमाना संशोधित करने वाली है।


करीब 40 साल पहले गरीबी का पैमाना तय करने का एक मात्र सरकारी मानदंड प्रतिदिन व्‍यक्ति द्वारा ली जाने वाली कैलोरी की मात्रा को माना गया। तब से इसमें कई बदलाव आए। यह भी माना गया कि साइकिल, टीवी या मोबाइल फोन रखने वाले गरीब नहीं हो सकते। देश में करीब 70 फीसदी घरों में टीवी है। माना जाता है कि सरकार की मंशा ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को कागजों पर गरीबी के दायरे से बाहर कर दुनिया में भारत की छवि 'गरीब मुक्‍त देश' के रूप में बनाने की है।


अमेरिका में 11000 डॉलर प्रति व्‍यक्ति सालाना आय वाले व्‍यक्ति को गरीब नहीं माना जाता। पर चार लोगों के परिवार के लिए यह सीमा मात्र 22000 डॉलर है। यूरोप में गरीबी का मानदंड यह रखा गया है कि अगर देश की औसत आय से व्‍यक्ति की आय 60 फीसदी कम हो तो उसे गरीब की श्रेणी में रखा जाएगा।


योजना आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि खानपान पर शहरों में 965 रुपए और गावों में 781 रुपए प्रति महीना खर्च करने वाले शख्स को गरीब नहीं माना जा सकता है।


योजना आयोग की मानें तो हेल्थ सर्विसेस पर 39.70 रुपए/महीना खर्च करके आप स्वस्थ रह सकते हैं। शिक्षा पर 99 पैसे प्रतिदिन खर्च करते हैं तो आपको शिक्षा के संबंध में कतई गरीब नहीं माना जा सकता है। यदि आप 61.30 रुपए महीनेवार, 9.6 रुपए चप्पल और 28.80 रुपए बाकी पर्सनल सामान पर खर्च कर सकते हैं तो आप आयोग की नजर में बिल्कुल भी गरीब नहीं कहे जा सकते।


आयोग ने यह डाटा बनाते समय 2010-11 के इंडस्ट्रियल वर्कर्स के कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स और तेंडुलकर कमेटी की 2004-05 की कीमतों के आधार पर खर्च का हिसाब-किताब दिखाने वाली रिपोर्ट पर गौर किया है। हालांकि, रिपोर्ट में अंत में कहा गया है कि गरीबी रेखा पर अंतिम रिपोर्ट एनएसएसओ सर्वेक्षण 2011-12 के बाद पेश की जाएगी।


सरकार के अनुसार गरीब नहीं होने की डाइट
खाद्य पदार्थ - लागत ----- बाजार भाव --------- मात्रा
अनाज ------- 5.5 रु -- 15 रु. किलो (आटा)- 266 ग्राम
दाल -------- 1.02 रु -- 58 रु किलो (तुअर) - 18 ग्राम
दूध -------- 2.33 रुपए - 30 रु/लीटर ----- 78 मिली
तेल ------- 1.55 रुपए -- 70 रु/लीटर ---- 22.14 मिली
सब्जी ------ 1.95 रुपए - 30 रु किलो ----- 65 ग्राम
फल ------ 44 पैसे ----- 30 रु दर्जन (केला) - एक केला भी नहीं
शकर ------ 70 पैसे ----- 30 रुपए किलो -- 23 ग्राम
ईंधन ------ 3.75 रुपए -- 452 रुपए/सिलेंडर -- 4 महीने/सिलेंडर
(सरकार के अनुसार हर महीने पढाई-लिखाई के लिए 99 पैसे, कपड़े-लत्ते के लिए 61.30 रुपए, जूते-चप्पल के लिए 9.60 रुपए, साज-सिंगार के लिए 28.80 रुपए काफी हैं।)



और विशेषज्ञ के अनुसार एक स्वस्थ व्यक्ति की डाइट
खाद्य पदार्थ - मात्रा ---- बाजार भाव ------- लागत
अनाज ----- 200 ग्राम -- 15 रु. किलो (आटा) - 3.00 रुपए
दाल ------ 40 ग्राम --- 58 रु किलो (तुअर) -- 2.30 रुपए
दूध ------ 300 मिली -- 30 रु/लीटर ------- 9 रुपए
तेल ------ 20 मिली -- 70 रु/लीटर ------- 1.40 रुपए
सब्जी ---- 300 ग्राम -- 30 रु किलो -------- 9 रुपए
फल ----- 400 ग्राम -- 30 रु दर्जन (केला) -- दो केले
शकर ---- 7-100 ग्राम - 30 रुपए किलो ----- 30 पैसे
ईंधन ---- ---- ---- 452 रुपए/सिलेंडर --------
- डॉ. स्वर्णा व्यास, डायटिशियन, भोपाल मेमोरियल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर


कहां कितने गरीब
देश - गरीब आबादी (कुल जनसंख्‍या का प्रतिशत)

चीन - 2.8
स्विटजरलैंड - 6.9
अमेरिका - 12
फ्रांस - 6.2
रूस - 13.1
ब्रिटेन - 14
जर्मनी-15.5
ईरान - 18
श्रीलंका - 23
पाकिस्‍तान - 24



एक्‍सपर्ट कमेंट्स

वेद प्रताप वैदिक: इससे बड़ा मजाक और क्या हो सकता है? ये लोग गरीबी रेखा के ऊपर हैं। जो नीचे हैं, उनकी संख्या भी तेंडुलकर कमेटी के अनुसार 37 करोड़ 20 लाख है। हम जरा सोचें कि ये 37 करोड़ लोग 20 रुपए रोज में क्या-क्या कर सकते हैं? अगर कोई इंसान इंसान की तरह नहीं, जानवर की तरह भी रहना चाहे तो उसे कम से कम क्या चाहिए? रोटी, कपड़ा और मकान तो चाहिए ही चाहिए।

बीमार पड़ने पर दवा भी चाहिए और अगर मिल सके तो अपने बच्चों के लिए शिक्षा भी चाहिए। क्या 20 रुपए रोज में आज कोई व्यक्ति अपना पेट भी भर सकता है? आजकल गाय और भैंस 20 रुपए से ज्यादा की घास खा जाती हैं। क्या हमें पता है कि देश के करोड़ों वनवासी ऐसे भी हैं, जिन्हें गेहूं और चावल भी नसीब नहीं होते।

यह तो सरकारी आंकड़ा है। लेकिन असलियत क्या है? असलियत का अंदाज तो सेनगुप्ता कमेटी की रपट से मिलता है। उसके अनुसार भारत के लगभग 80 करोड़ लोग 20 रुपए रोज पर गुजारा करते हैं। यहां तेंडुलकर रपट सिर के बल खड़ी है। किसे सही माना जाए? तेंडुलकर को या सेनगुप्ता को? भारत का तथाकथित मध्यम वर्ग यदि 25-30 करोड़ लोगों का है तो शेष 80 करोड़ लोग आखिर किस वर्ग में होंगे? उन्हें निम्न या निम्न मध्यम वर्ग ही तो कहेंगे। उनकी दशा क्या है? क्या वे इंसानों की जिंदगी जी रहे हैं? उनकी जिंदगी जानवरों से भी बदतर है। वे गरीबी नहीं, गुलामी का जीवन जी रहे हैं।

अरुणा राय: शहरी इलाकों में हर महीने 965 रुपए और ग्रामीण इलाकों में 781 रुपए से ज्यादा खर्च करने वालों को गरीब नहीं बताने वाले योजना आयोग के हलफनामे से पता चलता है कि सरकार गरीबों के प्रति कितनी हमदर्दी रखती है और उसका यह नजरिया हकीकत से एकदम परे है। सरकार ने एक के बाद एक गरीब विरोधी फरमान सुनाएं हैं और अपने देश के गरीब लोगों को जरुरत की न्यूनतम चीजें मुहैया कराने की अपनी ही प्रतिबद्धता की अनदेखी की है।

ज्यां द्रेज: सुरेश तेंडुलकर कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर योजना आयोग के इस आकलन में स्वास्थ्य पर खर्च होने वाली राशि बेहद कम बताई गई है जो एक रुपए से भी कम है जिसमें एक क्रोसिन तक नहीं आती।

1 टिप्पणी:

  1. शायद सरकार के पास वह चश्मा नहीं जिससे गरीब दिख सके.....
    बढ़िया जागरूकता भरी प्रस्तुति हेतु आभार

    जवाब देंहटाएं

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