जियोंगहाका चाना (67 वर्ष) ने कहा,"मैं परिवार बढ़ाने के लिए मिजोरम और यहां तक कि भारत के बाहर जा सकता हूं।" चाना ने बताया कि उनके परिवार में कुल 181 सदस्य हैं, जिसमें 39 पत्नियां, 94 बच्चे, 14 बहुएं और 33 पोते-पोतियां हैं। ये सभी 100 कमरों वाले घर में रहते हैं।
चाना के एक पुत्र ननपरलियाना ने कहा,"हम सभी खुश हैं और दूसरे चर्च की तरह हम ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास करते हैं। एकमात्र अंतर यह है कि हमारा सम्प्रदाय बहुविवाह की इजाजत देता है।"
यह परिवार ईसाई पंथ चाना का हिस्सा है जिसका नाम जियांगहका के पिता चलियाचाना के नाम पर पड़ा। चलियाचाना ने इसकी स्थापना 1930 में की थी और चार पीढ़ियों के बाद 1700 सदस्य होने का दावा किया जाता है।
इस समुदाय के लोग काष्ठ कला एवं मिट्टी बर्तन बनाने के लिए प्रसिद्ध हैं। वेल्श मिशनरियों के आने तक चाना सम्प्रदाय के पूर्वज 'खुआंग' नामक पारम्परिक वाद्य यंत्र की पूजा करते थे।
इस समुदाय के एक सदस्य ने बताया,"वेल्स मिशनरियों ने 'खुआंग'की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया। इससे नाराज मेरे दादा चलियाचाना एवं उनके भाई ने चर्च से सम्बंध तोड़ लिया, जिसे चाना या लाल्पा कोहरान कहा जाता है।"
लेकिन प्रभावशाली चर्च के नेताओं पादरी संघ ने इसके ईसाई होने के दावे को नकार दिया।
आइजाल में पादरियों के संघ के नेता ने कहा,"ईसाई धर्म में बहुविवाह को मान्यता नहीं है और इसे स्वीकार करने वाले सम्प्रदाय के ईसाई होने का प्रश्न ही नहीं उठता। मिजोरम में बहुविवाह बहुत ही दुर्लभ है।"
एक आकलन के अनुसार मिजोरम में कुल 95 ईसाई पंथ हैं। कुछ के क्रियाकलाप एक दूसरे से एकदम अलग हैं। यहां तक कि उनमें से कुछ अपने बच्चों को दूसरे सम्प्रदाय के बच्चों के साथ पढ़ने की इजाजत तक नहीं देते जबकि ईसाई बहुल मिजोरम में साक्षरता दर 88 फीसदी से भी अधिक है।
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