मिनेसोटा स्थित‘मायो क्लीनिक कालेज ऑफ़ मेडिसिन’ के अनुसंधानकर्ताओं की टीम का कहना है कि आनुवंशिक रूप से मजबूत इन बिल्लियों के नाम ‘टीजीकैट 1 टीजीकैट 2 और टीजीकैट 3’ हैं जो पराबैंगनी किरणों में हरे रंग की चमकती नजर आती हैं क्योंकि इन्हें हरे रंग का फ्लोरसेंट प्रोटीन जीएफ़पी दिया गया है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि इन बिल्लियों में ‘ट्रिमसिप’ कहलाने वाले बंदरों के जीन भी डाले गए हैं जो एफ़आईवी संक्रमण को रोकते हैं। यह विषाणु बिल्लियों में एड्स संक्रमण के लिए जिम्मेदार होते हैं।
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