सहमी सहमी है सडक पर जिंदगी
हादसों ने की है दूभर जिंदगी ...
यूँ घिरी है दायरे में वक्त के
केद लगती है केलेंडर जिंदगी
रिस रहा है आदमी नासूर सा
सढ़ रही है कोड़ बन कर जिंदगी
हर तरफ गहरी नशीली साजिशें
बन गयी हर शाम तस्कर जिंदगी
झोंपड़ी में सांस लेना भी कठिन
और महलों में मुअत्तर जिंदगी
रह के उसने कातिल के शहर में
की बसर कलंदर जिंदगी ।
हों दिलों से दूर शेरी नफरतें
वरना होगी बद से बदतर जिंदगी ..........संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
22 सितंबर 2011
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शानदार गजल है। चांद शेरी जी को मेरी बधाई और शुभकामनाएं
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