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02 सितंबर 2011

कैसे मिटा श्रीकृष्ण पर लगा चोरी का आरोप?

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भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी के रात्रि को चंद्रमा के दर्शन नहीं किए जाते नहीं तो चोरी का झूठा आरोप लगता है, ऐसा हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है। इस संबंध में श्रीकृष्ण की एक कथा भी है जो इस प्रकार है-
भगवान श्रीकृष्ण के राज्य में सत्राजित नाम के एक यदुवंशी ने सूर्य भगवान को तप से प्रसन्न कर स्यमंतक मणि प्राप्त की थी। वह मणि प्रतिदिन सोना प्रदान करती थी। एक दिन सत्राजित राजा उग्रसेन के दरबार में आया। वहां श्रीकृष्ण भी उपस्थित थे। श्रीकृष्ण ने सोचा कि कितना अच्छा होता यह मणि अगर राजा उग्रसेन के पास होती। किसी तरह यह बात सत्राजित् को मालूम पड़ गई। इसलिए उसने मणि अपने भाई प्रसेन को दे दी। एक दिन प्रसेन जंगल गया। वहां शेर ने उसे मार डाला।
जब प्रसेन वापस नहीं लौटा तो सत्रजित को लगा कि कि कहीं श्रीकृष्ण ने प्रसेन को मारकर मणि तो नहीं चुरा ली। धीरे-धीरे यह बात राज्य में फैल गई। लेकिन वह मणि तो के मुंह में ही रह गई थी। जाम्बवान ने उस शेर को मारकर वह मणि अपनी पुत्री को दे दी। जब श्रीकृष्ण को यह मालूम पड़ा कि उन पर झूठा आरोप लग रहा है तो वे सच जानने के लिए जंगल में गए और मणि की तलाश में जाम्बवान की गुफा तक पहुंचे और जाम्बवान से मणि लेने के लिए उसके साथ २१ दिनों तक घोर संग्राम किया।
अंतत: जाम्बवान समझ गया कि श्रीकृष्ण तो उनके प्रभु हैं। त्रेता युग में श्रीराम के रूप में वे उनके स्वामी थे। जाम्बवान ने तब खुशी-खुशी वह मणि श्रीकृष्ण को लौटा दी और अपनी पुत्री जामबंती भी श्रीकृष्ण को सौंप दी। मणि मिलने पर सत्राजित ने भी अपनी पुत्री सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया।

1 टिप्पणी:

  1. सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
    अपने पर लगे आरोपों का स्पष्टीकरण व निराकरण करने की कोशिश का सन्देश देती है आपकी यह प्रस्तुति.

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