यह
मुस्कराहट
तो
हमारी फितरत है .
तू
कातिल निगाहों से
चाहे जितने
मेरे जिस्म के
टुकड़े करते जा
मेरे जिस्म का
हर टुकडा
तुझे देख कर
बस
यूँ ही
मुकुरयेगा
क्योंकि
हमारी आदत है
मुस्कुराने की
और तुम्हारी आदत है
सिर्फ और सिर्फ
हमें तड़पाने की ..............................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
बहुत खूब ... यूँ ही मुस्कान बिखेरते रहिये तड़प खुद कम हो जायेगी ...
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना |बधाई
जवाब देंहटाएंआशा
बहुत खूब अकेला साहब ...
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंway4host