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22 अगस्त 2011

मासूम जान पर फिर 'तांबे का खतरा'



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जयपुर। तांबे, पीतल के बर्तन घरों से अब चाहे गायब हो गए हों, लेकिन वर्षो पहले दुर्लभ श्रेणी में जा चुकी 'तांबे की बीमारी' फिर मासूमों की जान पर आफत बन कर लौट आई है। प्रदेश में करीब 15-20 साल के बाद आईसीसी (इंडियन चाइल्डहुड सिर्होसिस) की जानलेवा बीमारी का मामला सामने आया है।

कोटा जिले की तीन साल की एक मासूम बालिका में सामने आई इस बीमारी का इलाज अब जेकेलोन अस्पताल के चिकित्सक कर रहे हैं। वर्ष 1970 तक चिकित्सकों के लिए अनसुलझी रही इस बीमारी में नौ माह से तीन साल तक के बच्चों का लिवर खतरनाक ढंग से संक्रमित होता है। लिवर का आकार और वजन असामान्य तरीके से बढ़ने लगता है और कुछ ही माह में लिवर फेल होने से मृत्यु तक संभव है।

ये हैं कारण
चिकित्सकों के अनुसार तांबे या इससे बने मिश्रघातु के बर्तनों में लम्बे समय तक रखा या उबला दूध पिलाने से बच्चों में यह बीमारी होती है। बच्ची का उपचार कर रहे अस्पताल अधीक्षक डॉ.एस.डी.शर्मा ने बताया कि पहले तो इस बीमारी के लुप्तप्राय होने के कारण चिकित्सकों ने आईसीसी के बारे में सोचा ही नहीं था, लेकिन सामान्य तौर पर लिवर सम्बन्धी बीमारियों के लक्षण नहीं होने पर बायोप्सी कराई गई, जिसमें आईसीसी होने के प्रमाण मिले।

जमा हो जाता है तांबा
बीमारी में तांबा या मिश्रघातु में दूध रखने पर दूध में स्थित कैसीन (प्रोटीन) तांबे के साथ रासायनिक क्रिया कर तांबे के यौगिक बना लेती है। आमाशय के अम्लीय (हाइड्रोक्लोरिक अम्ल) माध्यम में यह तांबा अलग होकर लिवर में जमा हो जाता है। सामान्य लिवर में जहां तांबे की मात्रा 50 माइक्रोग्राम प्रति ग्राम (लिवर का कुल वजन) ही होती है। वहीं इस बीमारी में यह मात्रा 1000 माइक्रोग्राम तक पहुंच जाती है।

प्राथमिक अवस्था में इलाज संभव
इस बीमारी में लिवर में सिर्होसिस की प्रक्रिया शुरू होते ही यदि पता चल जाए तो पेनिसिलामिन एजेन्ट की दवा देने से सफल उपचार संभव है। चिकित्सकों के अनुसार यदि प्राथमिक अवस्था में 20 मिली ग्राम प्रति किलोग्राम (शरीर का वजन) के अनुसार दवा दी जाए तो तांबे की मात्रा को सफलतापूर्वक निकाला जा सकता है।

मां का दूध सबसे अच्छा
तांबे, पीतल या कांस्य के बर्तनों में दूध का उपयोग नहीं कर इस बीमारी को टाला जा सकता है। छह माह तक आवश्यक तौर पर बच्चों को मां का दूध ही पिलाने से ऎसी बीमारियों से निजात संभव है। इसीलिए राष्ट्रीय दिशानिर्देशों में भी इसे शामिल किया गया है।'
डॉ.एस.डी.शर्मा, अस्पताल अधीक्षक, जेकेलोन अस्पताल

गहन अघ्ययन से हुआ खुलासा
इस मामले में भी मरीज के परिवार की दिनचर्या तक के गहन अध्ययन के बाद आईसीसी का मामला होने की बात सामने आई। केस स्टडी में परिजनों से तांबे या मिश्रघातु के बर्तनों के उपयोग के बारे में पूछा गया तो इनकार कर दिया। बाद में यह सामने आया कि दूधवाला ऎसे बर्तनों में दूघ बेचने घर आता था। यह दूध रोजाना करीब 6 घंटे तक इस बर्तन में रखने पर घर पहुंचता था। इस खुलासे के बाद चिकित्सकों ने आईसीसी के बारे में सोचना शुरू किया।

पंकज चतुर्वेदी

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