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14 अगस्त 2011

अब नहीं चूस पाएंगे खून, मच्छरों की होगी नसबंदी


वैज्ञानिकों ने मलेरिया रोकने की कोशिश में शुक्राणु रहित मच्छर विकसित किए हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि मच्छरों की संख्या कम करने की दिशा में ये पहला महत्त्वपूर्ण क़दम है। मलेरिया की वजह से दुनिया भर में 10 लाख लोग मारे जाते हैं और अफ़्रीका में तो बच्चों की कुल मौत में से 20 प्रतिशत सिर्फ़ मलेरिया से ही होती है।

वैज्ञानिकों के इस प्रयास की चर्चा नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ में है। वैसे तो कीटों का बंध्याकरण नई बात नहीं है और इससे पहले सीसी मक्खी के वंध्याकरण में विकिरण का सहारा लिया गया था। मगर अब वैज्ञानिकों ने महीनों की मेहनत के बाद विकिरण की जगह मच्छरों को शुक्राणु रहित करने का नया तरीक़ा ढूँढ़ निकाला है।

लंदन के इंपीरियल कॉलेज की फ़्लेमिनिया कैटेरुचिया ने अपने छात्र जैनिस थैलायिल की मदद ली जिससे नर मच्छरों के शुक्राणु तो ख़त्म किए जा सकें मगर वह फिर भी स्वस्थ रहें।

जीन ख़त्म

थैलायिल ने 10 हज़ार मच्छरों के भ्रूण में आरएनए का एक ऐसा छोटा हिस्सा डाला जिससे उनमें शुक्राणु का विकास करने वाला जीन ख़त्म हो गया। इतनी मेहनत के बाद शोधकर्ता 100 शुक्राणु विहीन मच्छरों के विकास में क़ामयाब हो गए और ये भी पता चला कि मादा मच्छर को ऐसे मच्छरों और आम मच्छरों में अंतर पता नहीं लगा।

दरअसल मादा मच्छर जीवन काल में एक ही बार संबंध बनाती हैं और शुक्राणु जमा करके जीवन भर अंडे निषेचित करती हैं तो अगर वैज्ञानिक उन्हें ये धोखा देने में क़ामयाब हो जाते हैं कि उन्होंने नर मच्छर से सफलतापूर्वक संबंध बना लिया है तो वे बिना ये जाने ही अंडे देना जारी रखेंगी कि उन अंडों का निषेचन यानी फ़र्टिलाइज़ेशन तो हुआ ही नहीं है।

कई पीढ़ियों के बाद धीरे-धीरे आम मच्छरों की संख्या गिरती जाएगी और उम्मीद है कि इससे मलेरिया को कम करने में मदद मिल सकती है।

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