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28 अगस्त 2011

कभी नहीं देखा, कहां चल रही संस्था?


कोटा। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग द्वारा जारी छात्रवृत्तियों में सामने आए घोटाले में विभाग के कई बड़े अफसरों पर गाज गिर सकती है। ये वो अधिकारी हैं, जिन पर पात्र छात्रों तक छात्रवृत्ति पहुंचाने का दारोमदार था, लेकिन इन्होंने आंखें बंद कर ली और करोड़ों रूपए के चेक जारी करते रहे।

सूत्रों ने बताया कि सारा काम एक संविदाकर्मी के भरोसे हुआ। कागजों में संचालित संस्थाओं ने छात्रों के काल्पनिक नामों की सूचियां विभाग को भेज दी। विभाग ने बगैर ज्यादा पड़ताल किए इन्हें श्रेणीवार ओबीसी व एससीएसटी की छात्रवृत्तियां जारी कर दी। संस्थाओं का भौतिक सत्यापन तक नहीं किया गया। इसी का नतीजा हुआ कि लंबे समय तक ये संस्थाएं कागजों में चलती रही और करोड़ों रूपए की छात्रवृत्ति उठा ली। अब जब ऑडिट में यह सारा खुलासा हो रहा है तो विभाग में खलबली मची हुई है। ज्यादा डर वर्ष 2007-08 व 2008-09 में पदस्थापित रहे अफसरों को है।

सवाईमाधोपुर की तर्ज पर
यह सारा घोटाला सवाईमाधोपुर में हुए घोटाले की तर्ज पर हुआ। सूत्रों ने बताया कि वहां भी वर्ष 2003 से 2006 के दरम्यान जारी छात्रवृत्तियों में इसी तरह का घोटाला सामने आया था। सवाईमाधोपुर के बाद राज्य सरकार के निर्देश पर दौसा, करौली व टोंक में भी विशेष जांच हुई तो ऎसे ही तथ्य सामने आए थे। उक्त चारों जिलों के मामले में वर्तमान में राज्य का भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो देख रहा है। एक मामले में सवाईमाधोपुर के तत्कालीन सहायक निदेशक को गिरफ्तार भी किया जा चुका है। कोटा में हुई जांच भी इसी से जोड़कर देखी जा रही है, लेकिन सूत्र यह भी मानते है कि यहां को लेकर किसी व्यक्ति विशेष ने शिकायत की है।

नहीं मिला पिंटू
एकाउंटेंट गोपाल गर्ग पर हमले के मामले में प्रथम दृष्ट्या जांच के दायरे में आया रामगंजमण्डी निवासी पिंटू मेघवाल उसके घर व संभावित ठिकानों से गायब है। पुलिस ने उसकी तलाश में कई जगह दबिश दी, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं लगा। जांच अधिकारी उप निरीक्षक अनीस अहमद ने बताया कि जो मोटरसाइकिल मौके पर मिली थी, उसे पिंटू ही लाया था। उसके हाथ आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी।

व्यवस्था पर ही सवाल
सूत्रों ने बताया कि ऑडिट दल ने अब तक की छानबीन के बाद छात्रवृत्ति वितरण की व्यवस्था पर ही सवालिया निशान लगाए हैं। दल ने माना है कि अब तक जो व्यवस्था चली आ रही है, उसमें कई खामियां है। इस व्यवस्था के तहत अधिकारी सिर्फ हस्ताक्षर करने का काम कर रहे हैं। जबकि उन्हें एक-एक संस्था के रिकार्ड की छानबीन करनी थी। जिन कागजी संस्थाओं के नाम ऑडिट दल ने खोजे हैं, उनके बारे में उल्टा विभाग ऑडिट दल से पूछ रहा है। जबकि अरसे से विभाग इन संस्थाओं को करोड़ों रूपए देता आ रहा है। विभागीय दल ने उक्त संस्थाओं के संचालकों व नाम-पतों को लेकर ऑडिट दल से सवाल किए बताए।

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