हत्या के संदिग्ध और संघ के सिपाही रहे सुनील जोशी के हिंसा के पथ पर बढ़ते कदमों को पुलिस आसानी से रोक सकती थी. आशीष खेतान की रिपोर्ट
सुनील जोशी, हिंदुत्ववादियों की आतंकी साजिश का केंद्र बिंदु था. 2007 में मध्य प्रदेश के देवास जिले में जब उसके घर के बाहर रहस्यमय तरीके से उसकी हत्या कर दी गई तब उसकी उम्र पैंतालीस साल थी. लेकिन तब तक भी वह कट्टरता के गहरे हिंसक निशान छोड़ चुका था. चिंता की बात यह है कि अगर मध्य प्रदेश पुलिस समय रहते अपने काम को ठीक से अंजाम दे देती तो उसे इतना खून-खराबा फैलाने से रोका जा सकता था.
जोशी बेहद गरीब परिवार से था. उसने संघ द्वारा संचालित सरस्वती शिशु मंदिर में शिक्षा प्राप्त की थी. 1999 में वह महू जिले में संघ का जिला प्रचारक बन गया, जहां कुछ ही समय में वह कट्टर हिंदुत्ववादी के रूप में पहचाना जाने लगा. संघ में उसे गुरूजी के नाम से जाना जाता था.जोशी और डांगे ने महू के मंदिरों में कई बार बम धमाके करने की कोशिश की ताकि वहां हिंदू-मुसलिम दंगे भड़काएं जा सकें
2000 में जोशी और संघ के दो अन्य कार्यकर्ता संदीप डांगे और रामचंद्र कालसांगरा गहरे दोस्त बन गए. डांगे शाजापुर में तो कालसांगरा इंदौर में संघ का प्रचारक था. तीनों की यह दोस्ती आगे बड़े घातक गुल खिलाने वाली थी. असीमानंद के इकबालिया बयान में 2006 के बाद हुए लगातार बम धमाकों में जोशी का नाम मुख्य षड्यंत्रकारी के रूप में सामने आया है. लेकिन जोशी का रिश्ता इससे भी पहले अपराधों से जुड़ चुका था. जोशी ने डांगे के साथ मिलकर स्थानीय मुसलिमों को फंसाने और हिंदू-मुसलिम दंगे भड़काने के लिए महू के मंदिरों में कई बार बम धमाके करने की कोशिशें की. यह बात पिछले साल सितंबर में तब सामने आई जब सीबीआई ने महू से संघ के कार्यकर्ता और जोशी के घनिष्ठ मित्र राजेश मिश्रा पर शिकंजा कसा.
मिश्रा महू के पास पीथमपुरा में लोहे के पाइप बनाने की फैक्टरी चलाता है. 2001 में जोशी ने संघ के विशेष कामों के लिए उससे 15 पाइप बनवाए, जिसमें अंदर की ओर खांचे वाली धारियां और बीच में एक छेद बनवाया गया. अप्रैल 2002 में जोशी और डांगे ने महू में हनुमान मंदिर और स्वर्ग मंदिर के पास कम शक्ति वाले बम धमाके किए जिनमें एक व्यक्ति को मामूली चोटें आईं. दिसंबर, 2002 में भोपाल में हुए इज्तीमें (मुसलिमों की एक बड़ी धार्मिक सभा) से करीब आधा दर्जन जिंदा पाइप बम बरामद हुए. मिश्रा ने टीवी पर बमों की तस्वीरें देखीं. ये हूबहू वैसे ही थे जो उसने जोशी को मुहैया करवाए थे. उसने घबराहट में जोशी को फोन किया, लेकिन उसे कहा गया कि घबराने की कोई बात नहीं है.
अगस्त, 2003 में एक विवाद के बाद जोशी और डांगे ने कांग्रेस के आदिवासी नेता प्यारे सिंह निनामा और उनके बेटे दिनेश की हत्या कर दी. परिवारवालों ने एफआरआई में जोशी, मिश्रा और सात अन्य का नाम संदिग्धों के रूप दर्ज कराया. मिश्रा को गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन जोशी के खिलाफ पुख्ता सबूत होने के बावजूद पुलिस ने उसे गिरफ्तार नहीं किया. हालांकि संघ ने उसे निकाल दिया.
मिश्रा ने पुलिस को महू के मंदिरों और भोपाल में बम धमाके करने की नाकाम कोशिशों के पीछे जोशी का हाथ होने की बात बताई. पुलिस ने इस मामले में मिश्रा को तो आरोपित किया लेकिन जोशी का नाम शामिल नहीं किया. जोशी को कानून के शिकंजे से बच निकलने की खुली छूट दे दी गई. इसने उसे बाद में और बम धमाके करने का मौका दिया जिनमें दर्जनों महिलाएं, पुरुष और बच्चे मारे गए.
फरवरी, 2010 में सीबीआई की टीम ने देवास पहुंचकर स्थानीय पुलिस से जोशी की डायरी और उसके द्वारा बनाए रेखाचित्र हासिल किए जो हत्या के बाद उसकी जेब से बरामद हुए थे. सीबीआई को यह भी पता चला कि जोशी का मोबाइल, बंदूक और दूसरी कईं निजी चीजें संघ के नेताओं ने जोशी की हत्या के बाद उसके घर से हटा ली थीं. पुलिस ने जोशी की हत्या की जांच न करने का दबाव होने की बात भी सीबीआई को बताई. जोशी की फोन बुक में संघ के दो वरिष्ठ नेताओं इंद्रेश कुमार और राम माधव के नंबर मिले. इंद्रेश का नंबर इमरजेंसी नंबर के रूप में दर्ज था. स्वामी असीमानंद और भाजपा के तेज-तर्रार सांसद योगी आदित्यनाथ का नंबर भी इसी नाम से था. इसके अलावा संघ के दिल्ली के झंडेवालान स्थित मुख्यालय का नंबर भी था. रेखा चित्र असल में बम का सर्किट था.
जोशी को संघ से निकाले जाने के बाद भी वह संघ के पदाधिकारियों के लगाातार संपर्क में था. इसका खुलासा सीबीआई द्वारा जून से दिसंबर, 2007 के बीच जोशी के कॉल रिकाॅर्ड की जांच करने पर हुआ.कई सवाल हैं जिनके जवाब जोशी की चिता के साथ जल गए हैं. परंतु जिन हिंसक कदमों के निशान वह पीछे छोड़ गया है वे कई और चिंताजनक सवाल खड़े करते हैं.
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