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22 अगस्त 2011

आज नकद कल फसाद-

आज नकद कल फसाद-1

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आप श्री राम सेना से कभी भी और कहीं भी दंगे करवा सकते हैं बस आपके पास सही कीमत अदा करने की कुव्वत होनी चाहिए. पुष्प शर्मा की तहकीकात. लेखिका संजना

' मंगलौर पब अटैक ' इस वाक्य को यूट्यूब पर टाइप करने पर 133 वीडियो परिणाम मिलते हैं. पहले वीडियो को अब तक तकरीबन तीन लाख लोग देख चुके हैं. यही वाक्य गूगल सर्च पर लिखा जाए तो 69 हजार वेबसाइटों का संदर्भ मिलता है. संबंधित घटना 24 जनवरी, 2009 की है. उस दिन मंगलौर के एक पब में तकरीबन 35-40 लोगों ने जबर्दस्ती घुसकर महिलाओं पर हमला बोल दिया था. मारपीट की इस घटना को एक दक्षिणपंथी संगठन श्री राम सेना, जिसे इससे पहले तक शायद ही कोई जानता हो, के सदस्यों ने अंजाम दिया था. संगठन के कैडरों का कहना था कि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं का शराब पीना 'असभ्य आचरण' की श्रेणी में आता है और यह 'हिंदू संस्कृति और परंपराओं' का अपमान है. इस घटना के दो दिन बाद ही भारतीय गणतंत्र की साठवीं सालगिरह थी. 26 जनवरी को पूरे दिन राष्ट्रीय समाचार चैनलों पर पब से निकलकर दौड़ती, गिरती-पड़ती और पिटती महिलाओं का वीडियो फुटेज दिखाया जाता रहा (यह वीडियो फुटेज टीवी चैनलों को सिर्फ इसलिए मिल पाया था कि पब पर हमला करने के आधा घंटा पहले सेना ने खुद ही पत्रकारों को इसकी सूचना दी थी). टीवी चैनलों पर दिखाए जाने के बाद यह घटना हर जगह चर्चा का विषय बन गई. फ्रांस, रूस और जर्मनी तक के पत्रकारों ने इस घटना की रिपोर्टिंग की. इस तरह दो दिनों में ही श्री राम सेना घर-घर में जाना जाने वाला नाम बन गया.

" मैं इसमें सीधे शामिल नहीं हो सकता. मेरी एक छवि है, समाज में कुछ प्रतिष्ठा है. लोग मुझे सिद्घांतों वाले व्यक्‍ति के रूप में देखते हैं, एक आदर्शवादी और ‌हिंदुत्ववादी के रूप में देखते हैं "

प्रमोद मुतालिक, राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री राम सेना

एक संगठन के रूप में सेना ने हमेशा खुद को एक उग्र हिंदूवादी संगठन साबित करने की कोशिश की है. सेना के नेता यह दावा करते रहे हैं कि वे हिंदू धर्म और संस्कृति के झंडाबरदार हैं और उनके कार्यकर्ता इस काम में लगे हुए कर्मठ सिपाही. उनके खुद के शब्दों में, अपने हिंदूवादी एजेंडे को लागू करने के लिए उन्हें लोगों से मारपीट करने, संपत्तियों और कलाकृतियों को नष्ट करने और धर्म से बाहर जाकर जोड़ी बनाने वालों को अलग करने में कोई झिझक नहीं. कुल मिलाकर इस संगठन का पहचानपत्र हिंसा है, नैतिकता और संस्कृति की आड़ में की जाने वाली हिंसा.

हालांकि इस संगठन और उसकी कारगुजारियों के बारे में तहलका की छह सप्ताह तक चली तहकीकात बताती है कि सेना के संस्कृति और नैतिकता की रक्षा के दावे किस तरह एक पाखंड भर हैं. 'धर्म रक्षा' के लिए तात्कालिक हिंसक प्रतिक्रिया करना श्री राम सेना के कार्यकर्ताओं का सिर्फ एक घृणित चेहरा है. असल में तो यह संगठन सनकी और आवारागर्द लोगों का एक ऐसा झुंड है जिसे पैसे देकर भी अपना काम कराया जा सकता है. 'दंगे के लिए ठेका' लेने वाले इस संगठन की असलियत उजागर करने वाली तहलका की तहकीकात बताती है कि इससे तोड़फोड़ करवाने के लिए बस आपको कुछ कीमत चुकाने के लिए तैयार होना है. श्री राम सेना के इस चेहरे को सामने लाने के लिए एक तहलका संवाददाता ने खुद को कलाकार बताकर श्री राम सेना के अध्यक्ष प्रमोद मुथालिक से मुलाकात की. उसके सामने एक प्रस्ताव और तर्क रखा. तर्क यह था कि नकारात्मक प्रचार भी आखिर प्रचार ही होता है, प्रस्ताव यह था कि श्री राम सेना कलाकार के चित्रों की प्रदर्शनी पर हमला करे जिससे देश-दुनिया में सभी लोगों का ध्यान उसके चित्रों की ओर चला जाए और वह बाद में ऊंचे दामों पर इन्हें बेच सके (मुथालिक को यह भी बताया गया कि ये चित्र हिंदू-मुसलिम सद्भाव से संबंधित हैं और इनमें खासकर हिंदू-मुसलिम शादियों का चित्रण है). बदले में मुथालिक और सेना को वह प्रचार तो मिलता ही जो मंगलौर पब पर हमले के बाद मिला था, साथ ही इस उपद्रव को आयोजित करने का मेहनताना भी मिलता. इस प्रस्ताव पर मुथालिक की प्रतिक्रिया में गुस्सा या डर कतई नहीं था. उसने तुरंत तहलका संवाददाता को सेना के कई सदस्यों के फोन नंबर दे दिए और फिर एक के बाद एक ऐसे कई आपराधिक चेहरे सामने आते गए जो पेशेवराना अंदाज़ में अराजकता फैलाने के उस्ताद थे. इस पूरी कहानी को जानने से पहले शायद श्री राम सेना और इसके संस्थापक के अतीत के बारे में जानना बेहतर रहेगा.

" श्री राम सेना के पास एक बहुत बढ़िया टीम है, जो भी आप करवाना चाहते हैं कर देंगे. हमारे पास हर चीज की सेटिंग है. सिर्फ एक ही प्रॉब्लम है- मनी प्रॉब्लम "

कुमार, मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य

श्री राम सेना की शुरुआत 2007 में प्रमोद मुथालिक ने की थी जो अब भी इसका राष्ट्रीय अध्यक्ष है. उत्तर कर्नाटक के बगलकोट में जन्मे मुथालिक ने अपने शुरुआती दिन हिंदू दक्षिणपंथी संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ गुजारे. वह 13 साल की उम्र से ही शाखा जाने लगा था. 1996 में आरएसएस में उसके सीनियरों ने मुथालिक को अपने सहयोगी संगठन बजरंग दल में भेज दिया. दल का दक्षिण भारत का संयोजक बनने में मुथालिक को एक साल से भी कम समय लगा. मुथालिक को जानने वाले उसे महत्वाकांक्षी, समर्पित और तीखा वक्ता कहते हैं. आरएसएस और इसके दूसरे संगठनों के साथ अपने 23 साल के जुड़ाव में मुथालिक का कई बार कानून से आमना-सामना हुआ और अपने ऊपर लगे भड़काऊ भाषण देने के आरोपों के चलते उसे कई बार जेल भी जाना पड़ा.

हिंदुत्व के प्रति उसके तथाकथित समर्पण का जब उसे कोई राजनीतिक लाभ नहीं मिला तो 2004 में उसने आरएसएस से अपना नाता तोड़ लिया. उसने दावा किया कि आरएसएस और इससे जुड़े अन्य संगठन पर्याप्त सख्ती न अपनाकर हिंदू हितों से गद्दारी कर रहे हैं. इसके बाद यह अपेक्षित ही था कि 2007 में स्थापना के बाद से ही अत्यंत कट्टर हिंदुत्व की राजनीति श्री राम सेना की पहचान बन गई. मुथालिक कहते हैं कि हिंसा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है. राजनीति के केंद्रीय रंगमंच पर आने की कोशिश में 2008 में मुथालिक ने राष्ट्रीय हिंदुत्व सेना का गठन किया, जो श्री राम सेना का राजनीतिक धड़ा है. लेकिन यह बुरी तरह से नाकाम रही. चुनाव लड़ने वाला इसका कोई भी उम्मीदवार अपनी मौजूदगी तक दर्ज नहीं करा सका. तहलका से बात करते हुए मुथालिक ने कैमरे के सामने यह स्वीकार किया कि उसके उम्मीदवार राज्य चुनाव इसलिए हार गए क्योंकि 'हमें कामयाब होने के लिए पैसा, धर्म और ठगों की जरूरत है. हमें यह पता नहीं था. आज की राजनीतिक स्थिति बदतर हो गई है.'

चुनावी राजनीति में फिर से लौटने की कोशिश के फेर में मुथालिक और सेना ने और अधिक कट्टर रुख अपनाते हुए 'हिंदू' पहचान को मजबूती देने की योजनाओं के एक सिलसिले की शुरुआत की. हालांकि इस संगठन का मजबूत आधार तटीय और उत्तर कर्नाटक के कुछ इलाकों में है, लेकिन इसकी गतिविधियां इन्हीं इलाकों तक सीमित नहीं हैं. 24 अगस्त, 2008 को दिल्ली में श्री राम सेना के कुछ सदस्य सहमत नामक एनजीओ द्वारा आयोजित एक कला प्रदर्शनी में घुस गए और एमएफ हुसैन की अनेक तसवीरों को नष्ट कर दिया. एक माह बाद सितंबर में मंगलौर में एक सार्वजनिक सभा में बोलते हुए मुथालिक ने बंेगलुरु बम धमाकों का जिक्र किया, जो एक हफ्ता पहले हुए थे और यह घोषणा की कि सेना के 700 सदस्य आत्मघाती हमले करने के लिए प्रशिक्षण ले रहे थे. उसने घोषणा की, 'अब हमारे पास और धैर्य नहीं है. हिंदुत्व को बचाने के लिए जैसे को तैसा का ही एकमात्र मंत्र हमारे पास बचा है. अगर हिंदुओं के धार्मिक महत्व के स्थलों को निशाना बनाया गया तो विरोधियों को कुचल दिया जाएगा. अगर हिंदू लड़कियों का दूसरे धर्म के लड़कों द्वारा इस्तेमाल किया जाएगा तो अन्य धर्मों की दोगुनी लड़कियों को निशाना बनाया जाएगा.'

" मैंने पहले 1996 में आरएसएस में काम किया. फिर बजरंग दल में. मैं उस मुख्य टीम में शामिल था जिसने मंगलौर पब में हमला किया था. मगर पुलिस ने जो मामला दर्ज किया है उसमें मेरा नाम नहीं है. मैं कभी गिरफ्तार नहीं हुआ "

सुधीर पुजारी , मंगलौर में श्री राम सेना का एक सदस्य

कुछ महीनों बाद कर्नाटक पुलिस ने राज्य विधानसभा चुनावों के दौरान हुबली में हुए धमाकों के संबंध में जनवरी, 2009 में नौ लोगों को गिरफ्तार किया. उनका मुखिया नागराज जंबागी सेना सदस्य और मुथालिक का नजदीकी सहयोगी था- इसे तब खुद मुथालिक ने स्वीकार किया था. जुलाई, 2009 में जंबागी की बगलकोट जेल में ही हत्या हो गई. मंगलौर पब हमले के दौरान अपने कैडरों को उकसाने के लिए गिरफ्तार किए जाने के कुछ मिनट पहले मुथालिक ने पत्रकारों से कहा था कि वे इन हमलों को इतना बड़ा मुद्दा क्यों बना रहे हैं. उसने कहा था- 'हम अपनी हिंदू संस्कृति को बचाने के लिए यह कदम उठा रहे हैं और उन लड़कियों को सजा दे रहे हैं जो पबों में जाकर इस संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश कर रही थीं. जो कोई भी मर्यादा की सीमा से बाहर जाएगा हम उसे बरदाश्त नहीं करेंगे.'

मुथालिक के सुझाए 'मर्यादा' में रहने के ये तौर-तरीके आज भी तटीय कर्नाटक में अनेक प्रकार से लागू किए जा रहे हैं. मंगलौर में सेना के कैडर 15 जुलाई, 2009 को एक हिंदू शादी के समारोह में घुस गए और वहां मौजूद एक मुसलिम मेहमान के साथ मारपीट की. पूरे इलाके में मुसलिम लड़के महज हिंदू लड़कियों से बात करने के लिए ही पीट दिए जाते हैं. लव जिहाद (हिंदू लड़कियों को कथित तौर पर मुसलिम लड़कों द्वारा शादी का प्रस्ताव देकर अपने धर्म में शामिल करने की साजिश) के नाम पर स्थानीय लोगों की भावनाओं को भड़काने की भी जमकर कोशिश की जा रही है.

इस तरह अपनी पड़ताल के लिए तहलका के पत्रकार ने खुद को एक कलाकार के रूप में पेश किया और घोषणा की कि उसकी अगली प्रदर्शनी लव जिहाद की सकारात्मक छवि पर होगी. लेकिन इसके बावजूद मुथालिक या सेना के किसी सदस्य पर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता दिखा कि वे जिस चीज़ का सैद्धांतिक रूप से विरोध करने का दावा करते हैं उससे संबंधित चित्रों की बिक्री उनके विरोध से बढ़ जाने वाली है.

पेश है तहलका की मुथालिक से मुलाकात का सिलसिलेवार ब्योरा.

तहलका की मुथालिक से पहली भेंट हुबली स्थित सेना के दफ्तर में हुई. कला प्रदर्शनी पर पूर्वनियोजित तरीके से हमले का प्रस्ताव रखने से पहले यह कहते हुए कि 'हिंदुत्व के लिए हम भी कुछ करें', नकद 10 हजार रुपए दान के रूप में दिए गए. मुथालिक ने झट से पैसे लिए और उन्हें अपनी जेब में रख लिया. उसने मना करने का दिखावा करने तक की जहमत नहीं उठाई.
बातचीत के क्रम में एक ऐसा प्रस्ताव सुझाया गया जो दोनों पक्षों के लिए लाभकारी था. मुथालिक के चेहरे पर हमने किसी तरह की हैरानी या अचंभे का भाव नहीं देखा - तब भी नहीं जब तहलका संवाददाता ने यह सुझाया कि प्रदर्शनी बंेगलुरु के एक मुसलिम बहुल इलाके में होनी चाहिए ताकि हमले का अधिकतम असर हो. इस सुझाव पर मुथालिक की एकमात्र प्रतिक्रिय़ा थी - ‘हां. हम ऐसा कर सकते हैं. मंगलौर में भी कर सकते हैं.’ इस तरह एक दूसरे शहर मंगलौर, जहां हमला किया जा सकता था, पर भी बात पक्की हो गई. अगले पांच मिनटों के भीतर मुथालिक ने इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए हमें दो सेना नेताओं- बेंगलुरु शहर अध्यक्ष वसंतकुमार भवानी और सेना के उपाध्यक्ष प्रसाद अवतार से मिलने का सुझाव दिया जो मंगलौर में रहते हैं.

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