में जानता हूँ ........
मोत सियाह
काली रात से भी
डरावनी है
मोत गमगीन होती है
बस यूँ ही
कुछ बेवफाई
रही है तेरी मुझ से
इसीलिए देख ले
तेरे सामने
ज़हर भरे
जाम पर जाम
पिए जा रहा हूँ में .....................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
आपकी यह उत्तम रचना सोमवार को हमारे साथ आप देख सकते हैं ब्लॉगर्स मीट वीकली में। आपका स्वागत है।
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सुन्दर पंक्तिया....
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