भ्रष्टाचार रोकने के लिए मजबूत लोकपाल बनाए जाने की मांग लेकर अन्ना हजारे अनशन पर हैं। शुरुआती जंग में सरकार कदम दर कदम पीछे हट रही है। फिर भी जन लोकपाल अभी आ पाएगा, ऐसा विश्वासपूर्वक नहीं कहा जा सकता। अन्ना जिस लोकपाल की मांग कर रहे हैं, वह बन गया तो सबसे ज्यादा खतरा नौकरशाहों को ही रहेगा। तो क्या अन्ना की राह में नौकरशाही भी रोड़े अटका रही है? अफसरशाही को कैसे भ्रष्टाचार के चंगुल से छुड़ाया जा सकता है? इन सवालों पर क्या है इंडिया की सोच? पढ़ें पूर्व आयकर आयुक्त विश्वबंधु गुप्ता और पूर्व सीबीआई प्रमुख जोगिंदर सिंह के विचार और फिर अपने कमेंट व वोट के जरिए जानें-बताएं इंडिया की सोच:
आज देश में दो तरह का भ्रष्टाचार है। एक तो आम जनता से जुड़ा भ्रष्टाचार, जिससे जनता रोज मर्रा की जिंदगी में जूझती है। इसे आप 'रूटीन करप्शन' कह सकते हैं। और दूसरा, सत्ता सुख भोगने वाले नेताओं की सोची-समझी योजना के तहत किया जाने वाला भ्रष्टाचार। इसे आप 'प्लैन्ड करप्शन' की श्रेणी में रख सकते हैं। नौकरशाही की भूमिका दोनों ही तरह के भ्रष्टाचार में अलग-अलग है। राशन कार्ड बनाने, जाति प्रमाण पत्र जारी करने, बिजली कनेक्शन जारी करने, स्कूल-कॉलेज में दाखिला आदि में होने वाला भ्रष्टाचार रूटीन करप्शन के तहत आता है। इसमें नौकरशाहों की भूमिका ज्यादा होती है और उनका फायदा भी ज्यादा है।
मोटे अनुमान के आधार पर कहा जाए तो इसमें करीब 70 फीसदी रकम नौकरशाहों की जेब में जाती है। दूसरी ओर, 2जी घोटाला, सीडब्ल्यूजी घोटाला, खाद्यान्न घोटाला, नोएडा जमीन घोटाला आदि प्लैन्ड करप्शन हैं। सस्ता अनाज विदेश में बेचना, फिर बाहर से मंगा कर यहां जनता को महंगे में खरीदने पर मजबूर करना भी इसी तरह का भ्रष्टाचार है। उदारीकरण का दौर शुरू होने के बाद से खाद्यान्न, रियल एस्टेट, रक्षा, दूरसंचार तमाम क्षेत्रों में इस तरह से भ्रष्टाचार किया जा रहा है और हजारों, लाखों करोड़ के वारे न्यारे किए जा रहे हैं। इसमें नेताओं (संबंधित विभाग के मंत्रियों) की भागीदारी और हिस्सेदारी ज्यादा होती है। मोटे अनुमान के आधार पर कह सकते हैं कि ऐसे घोटालों में नेताओं की जेब में 75 से 90 फीसदी तक रकम चली जाती है।
मुश्किल यह है कि दोनों ही तरह के करप्शन में बढ़ोतरी हो रही है। रूटीन करप्शन में रिश्वत की रकम बढ़ रही है, तो प्लैन्ड करप्शन में घोटालों के नए-नए तरीके ईजाद हो रहे हैं। भ्रष्टाचार रोकने की जिम्मेदारी सरकार पर है। पर मंत्री 'प्लैन्ड करप्शन' में लगे होते हैं। उनका ध्यान रूटीन करप्शन पर जाता ही नहीं है। नतीजतन नौकरशाहों को बेखौफ होकर भ्रष्टाचार करने की छूट मिली हुई है। इस तरह भ्रष्टाचार बढ़ता ही जा रहा है। नौकरशाहों को मिलने वाला राजनीतिक संरक्षण नौकरशाही में भ्रष्टाचार बढ़ने का मुख्य कारण है। नौकरशाहों में कार्रवाई का कोई डर नहीं रह गया है। इसके दो प्रमुख कारण हैं। एक तो भ्रष्टाचार विरोधी कानून के अमल में सुस्ती और दूसरा, मंत्रियों की भ्रष्टाचार हटाने में नहीं है कोई दिलचस्पी। रूटीन करप्शन की बात करें तो ऐसे मामलों में कोई समीक्षा नहीं होती। इसलिए भी नौकरशाह खुल कर रिश्वत लेते हैं।
प्लैन्ड करप्शन की बात करें तो जो नेता कानून बनाते हैं, किसी न किसी रूप में उस पर अमल भी उन्हीं के हाथों में होता है। भ्रष्ट नौकरशाह के खिलाफ कार्रवाई का आदेश सरकार के मंत्री ही देंगे। ऐसे में कार्रवाई की इजाजत ही नहीं मिलती। सीबीआई के पास एक हजार से भी ज्यादा नौकरशाहों के भ्रष्टाचार की रिपोर्ट है, लेकिन उनके खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं हुई। भ्रष्ट नौकरशाहों पर नकेल कसने में सबसे बड़ी बाधा है सीबीआई का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं होना। सीबीआई पीएमओ के अधीन है और पीएमओ को नौकरशाह और सरकार का मुखिया चलाता है। यानी जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं, वही भ्रष्टाचार की जांच करने वाली एजेंसी के नियंता बने बैठे हैं।
भ्रष्टाचार हटाने के लिए सबसे पहले नौकरशाहों में खौफ पैदा करना होगा और सीबीआई को स्वतंत्र एजेंसी बनाना होगा। इसके बाद मंत्रालयों और मंत्रियों के सारे अधिकार खत्म करने होंगे। इनकी जगह हर क्षेत्र के लिए अलग-अलग स्वतंत्र निकाय के रूप में निगरानी तंत्र बनाना होगा। दूरसंचार के क्षेत्र में सरकार ने एक नियामक संस्था (ट्राई) बनाई है, लेकिन यह शुरुआत भर है। रियल एस्टेट, खाद्यान्न, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि से जुड़े क्षेत्रों में तत्काल नियामक संस्था बनाने की जरूरत है, जो सरकार के प्रभाव से मुक्त और जनता के प्रति जवाबदेह होकर फैसले ले और उन पर अमल कराए।
फैक्टफाइल
1. ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की एक स्टडी के मुताबिक 50 फीसदी भारतीयों को सीधे तौर पर सरकारी दफ्तर में अपना काम निकलवाने के लिए रिश्वत देनी होती है।
2. स्टडी के मुताबिक भारत की नौकरशाही थाइलैंड, द. कोरिया, मलेशिया, ताइवान, वियतनाम, इंडोनेशिया, फिलीपींस जैसे अपेक्षाकृत कम विकसित देशों की तुलना में न केवल कम सक्षम है, बल्कि इनसे काम करवाने में काफी मुश्किल होती है और वक्त भी ज्यादा लगता है।
3. एक अन्य अध्ययन के मुताबिक 91 फीसदी मामलों में घूस की मांग करने वाले सरकारी अफसर ही होते हैं।
4. 92 फीसदी मामलों में भ्रष्टाचारी नकद रिश्वत ही चाहते हैं। 5 फीसदी किसी तोहफे के रूप में घूस लेना पसंद करते हैं, जबकि सिर्फ 1 फीसदी मामलों में बतौर रिश्वत मेहमाननवाजी, सैर-सपाटा आदि की मांग की जाती है।
5. अखिल भारतीय सेवा और ग्रुप 'ए' रैंक के अफसरों को लोकपाल के दायरे में लाने का प्रस्ताव किया गया है।
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