भागवत के अंक 235 में आपने पढ़ा....
इसी प्रकार अपने दूसरे और तीसरे बालक के भी पैदा होते ही मर जाने पर वह ब्राह्यण लड़के की लाश राजमहल के दरवाजे पर डाल गया और वही बात कह गया। नवें बालक के मरने पर जब वह वहां आया, तब उस समय भगवान श्रीकृष्ण के पास अर्जुन भी बैठे हुए थे। अर्जुन ने देखा भगवान मौन हैं, ब्राह्मण अपने पुत्रों की असामयिक मृत्यु से विचलित है लेकिन कोई उसकी मदद नहीं कर रहा है। अर्जुन से रहा नहीं गया वह ब्राह्मण से बोल पड़ा। यह भगवान की लीला है।
अब आगे....
महाभारत की कथा गति पकड़ रही है। इस कथा के केन्द्र में कृष्ण ही हैं। उनकी विभिन्न लीलाएं हैं। कृष्ण की शिक्षा, उनके उपदेश सभी हमारे काम आने वाले हैं। महाभारत की पूरी कथा अब कृष्ण के ईर्द-गिर्द ही घूमने वाली है, संचालित भी वही करते हैं और उसके केन्द्र में भी वही हैं। पाण्डवों के लिए सबसे बड़े हितैशी और कौरवों के लिए शत्रु।
सारी बातें या तो कृष्ण के लिए कही जा रही हैं या कृष्ण द्वारा कही जा रही हैं। कृष्ण के अलावा महाभारत का कोई पात्र नहीं है जो इस कथा को आगे बढ़ाता है। कृष्ण अपनी गृहस्थी में भी उतने ही रमे हैं जितने वे महाभारत यानी हस्तिनापुर के पात्रों को लेकर सोच रहे हैं। गृहस्थी और दुनियादारी में कैसे जीया जाए यह कृष्ण से सीखा जा सकता है।
कृष्ण ने दुनिया और दांम्पत्य के बीच में जो तालमेल बनाया है वह अद्भुत है।महाभारत में अब भगवान व्यस्त हो जाएंगे। बार-बार द्वारका से इन्द्रप्रस्थ और हस्तिनापुर जाना होगा। इसीलिए भागवत ग्रंथकार ने भगवान की द्वारकालीला का भी वर्णन दसवें स्कंध के अंतिम 90वें अध्याय में किया है।
द्वारकानगरी की छटा अद्भुत थी। जिधर देखिये, उधर ही हरे-भरे उपवन और उद्यान लहरा रहे हैं। वह नगरी सब प्रकार की सम्पत्तियों से भरपुर थी। भगवान श्रीकृष्ण सोलह हजार से अधिक पत्नियों के एकमात्र प्राणाधार थे। उन पत्नियों के अलग-अलग महल भी परम ऐश्वर्य से सम्पन्न थे। जितनी पत्नियां थीं, उतने ही अद्भुत रूप धारण करके वे उनके साथ विहार करते थे।
गृहस्थी चलाने का यह तरीका केवल कृष्ण के पास ही था। वे किसी भी पत्नी को नाराज नहीं करते। सबको बराबर स्नेह, प्रेम, आदर और समय दिया करते थे। कई ज्ञानी, ध्यानी, तपस्वी भी उनकी इस लीला को समझ नहीं पाए। जो छोटी बुद्धि के थे उन्होंने कृष्ण को कामी-विलासी की संज्ञा भी दी। आज भी कई लोग उनकी रासलीला, राधा प्रसंग और 16108 विवाहों को केवल दैहिक दृष्टि से ही देखते हैं। ऐसे लोगों के लिए कृष्ण न केवल दुर्लभ हैं बल्कि उन्हें कभी भी शांति नहीं मिल सकती।
कृष्ण तो तर्क से परे हैं। वे सभी तर्कों-कुतर्कों से ऊपर स्वयं एक सत्ता है। वे अविचल और परम धर्म के समतुल्य हैं। कृष्ण ने अपनी शक्ति के कई चमत्कार शिशुकाल से ही दिखाए। अब वे अपनी गृहस्थी की लीलाएं, अपने परिवार और कुटुम्ब के जरिए भी हमें जीवन के कई सूत्र दे रहे हैं। इन सूत्रों में ही मानव जीवन छिपा है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
14 अगस्त 2011
कृष्ण सिखाते हैं, जिंदगी जीएं तो कुछ इस तरह....
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