नई दिल्ली. मजबूत जन लोकपाल बिल पारित करवाने की लड़ाई लड़ रहे अन्ना हजारे और उनके सहयोगियों का एक बार फिर सरकार से टकराव हो सकता है। टीम अन्ना के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि मजबूत, प्रभावी लोकपाल के मुद्दे पर कोई बातचीत या समझौता करने का सवाल ही नहीं है। लेकिन स्थायी संसदीय समिति का कहना है कि वह तमाम मसौदों पर विचार कर अपनी राय देगा और इसी आधार पर नया मसौदा बनेगा। समिति के पास विचार के लिए 9 मसौदे हैं।
शुरू हुई कशमकश
मंगलवार को केजरीवाल अपने साथी प्रशांत भूषण के साथ संसदीय समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी से मिले। सूत्र बताते हैं कि यह अनौपचारिक मुलाकात हुई है। इसमें इस पर चर्चा हुई कि काम को कम समय में आगे कैसे बढ़ाया जाए। हालांकि अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
टीम अन्ना के एक और अहम सदस्य, पूर्व लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने भी पुणे में कहा है कि हमने सरकार को चार हफ्ते का वक्त दिया है। देखें सरकार क्या करती है। वह केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद के उस बयान पर प्रतिक्रिया दे रहे थे कि जन लोकपाल बिल पारित करने के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती।
अन्ना हजारे की तीन मांगों पर संसद में सैद्धांतिक सहमति के बाद इसे अमल में लाने के तरीके और समय को लेकर बहस शुरू हो गई है। सरकार विशेष सत्र बुलाने को तैयार नहीं दिख रही है। संसदीय स्थायी समिति के चेयरमैन अभिषेक मनु सिंघवी का कहना है कि समिति शीतकालीन सत्र के पहले अपनी रिपोर्ट दे देगी। उन्होंने कहा कि इतने महत्वपूर्ण विषय को समय सीमा में नहीं बांधना चाहिए।
लेकिन टीम अन्ना के प्रशांत भूषण का कहना है कि समिति की रिपोर्ट के बाद सरकार विशेष सत्र बुलाकर लोकपाल विधेयक पारित करा सकती है। प्रावधानों में सिटीजन चार्टर को लेकर ज्यादा कशमकश नहीं है। राज्यों में लोकायुक्त का मसला राज्यों से जुड़ा है लिहाजा इस मामले में केंद्र के पास एक विकल्प अपना मॉडल कानून राज्यों को भेजने का है। लेकिन सबसे पेचीदा मामला लोअर ब्यूरोक्रेसी को लोकपाल के दायरे में लाने का माना जा रहा है।
क्या है राय
सिंघवी ने कहा, हम संसद की भावना के साथ-साथ, समिति के सामने आए राहुल गांधी समेत सभी सुझावों पर पूरी गंभीरता से ध्यान देंगे। हालांकि उन्होंने साफ किया कि राहुल का सुझाव एक अंतिम उद्देश्य है और तात्कालिक कदमों को इसके लिए नहीं रोका जाएगा। समिति पूरे मामले में विशेषज्ञों की राय भी आमंत्रित करेगी। कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर का कहना है कि लोअर ब्यूरोक्रेसी को लोकपाल के दायरे में लाने के लिए दो तिहाई बहुमत से संविधान संशोधन की जरूरत होगी। यह मुश्किल लगता है। एक केंद्रीय मंत्री ने भी अय्यर की बात का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि फिलहाल हम देखेंगे कि समिति क्या उपाय सुझाती है। केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद का कहना है कि संसद देखेगी कि उसे क्या फैसला करना है। हमने लोअर ब्यूरोक्रेसी के लिए एक उपयुक्त तंत्र बनाने की बात कही है, संसदीय समिति हमें इसपर अपने बहुमूल्य सुझाव देगी।
जल्द होना चाहिए
प्रशांत भूषण का कहना है कि संसदीय समिति जल्द से जल्द अपनी रिपोर्ट दे सकती है, इसमें कोई मुश्किल नहीं है। उन्होंने कहा कि सरकार को समिति की रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार को संसद का विशेष सत्र बुलाकर इसे पारित कराने की पहल करनी चाहिए। भूषण लोअर ब्यूरोक्रेसी के मामले में किसी तरह की तकनीकी दिक्कत की बात से सहमत नहीं हैं। उनका कहना है कि संसद कानून बनाकर ऐसा कर सकती है।
समय सीमा
हालांकि समय सीमा के सवाल पर टीम अन्ना की मांग से भाजपा भी सहमत नहीं है। भाजपा नेता प्रकाश जावडेकर का कहना है कि अब संसद का प्रस्ताव होने के बाद सभी को कुछ व्यावहारिक पहलू पर ध्यान देना चाहिए। जद-यू नेता शरद यादव का कहना है कि अब संसद ने अपनी भावना प्रकट कर दी है और इसे मानने में कोई दिक्कत नहीं है। उन्होंने कहा कि हम तो पहले से ही इसके हिमायती थे, सरकार ही नहीं मानती थी।
कहां है मुश्किल
संविधान की धारा 311 के तहत सरकारी कर्मचारियों को संरक्षण प्राप्त है। लोकपाल के दायरे में लाने के लिए इस धारा में संशोधन की दरकार है। टीम अन्ना का मानना है कि संविधान संशोधन के बिना भी ऐसा संभव। संसद के प्रस्ताव में उपयुक्त मैकेनिज्म की बात है। संसदीय समिति देगी मैकेनिज्म पर सुझाव। सिटीजन चार्टर के तहत काम की समय सीमा तय करनी होगी। क्या काम कितने समय में होगा।
राज्यों में लोकायुक्त का गठन -
केंद्र का मानना है कि यह काम राज्यों को करना होगा। केंद्र दे सकता है मॉडल कानून। समिति की राय होगी अहम। समिति में सहमति बनाना भी पेचीदा काम। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने पर भी अभी तस्वीर साफ नहीं क्योंकि सरकार के बिल में इसका प्रावधान नहीं है। कांग्रेस और भाजपा की अलग अलग राय है। प्रधानमंत्री आएंगे तो किस सेफ गार्ड के सहारे, फिलहाल यह भी समिति के हवाले है। न्यायपालिका को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने पर फिलहाल सहमति है। सांसदों के संसद के भीतर का आचरण भी संविधान की धारा 105 के तहत विशेष संरक्षण के दायरे में है। इस मसले पर संसदीय समिति में आमराय बनाना मुश्किल है।
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
30 अगस्त 2011
समय सीमा पर आज फिर आमने-सामने हुए सरकार-टीम अन्ना!
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