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30 अगस्त 2011

दोबारा नहीं लौटी लोकपाल बिल पेश करने वाली सरकार

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नई दिल्ली. संसद में लोकपाल बिल पेश करके राहत की सांस ले रही यूपीए सरकार के लिए यह अच्छी खबर नहीं है। इस विवादित बिल के इतिहास पर गौर करें तो पता चलता है कि अब तक जिस सरकार ने भी संसद में लोकपाल बिल पेश किया, वह सत्ता में लौट नहीं पाई। फिर चाहे वह कांग्रेस की सरकार रही हो, भाजपा-नीत एनडीए या फिर वीपी सिंह की संयुक्त मोर्चा सरकार।


पहली दफा 1 मई 1968 को यह बिल पेश हुआ। तब 20 अगस्त को लोकसभा में पारित भी हुआ मगर राज्यसभा में पारित होने से पहले ही लोकसभा भंग हो गई। उसके बाद 2 अगस्त, 1971 को इंदिरा गांधी सरकार में मंत्री रामनिवास मिर्धा ने यह बिल पेश किया पर पारित नहीं करा पाए और चुनाव आ गए।


1977 में कांग्रेस को सत्ता से बाहर कर जनता पार्टी की सरकार दिल्ली पर काबिज हुई तो 23 जुलाई को चौधरी चरण सिंह ने फिर लोकपाल बिल सदन में रखा। वह सरकार 28 महीने में चली गई। उसके बाद कांग्रेस सत्ता में लौटी तो 25 अगस्त 1985 को एके सेन ने एक दफा फिर इस बिल को संसद के पटल पर रखा लेकिन वीपी सिंह की आंधी में वह सरकार भी हार गई। 1989 में 21 दिसंबर को वीपी सिंह की कैबिनेट में साथी दिनेश गोस्वामी लोकपाल बिल ले आए। इतिहास गवाह है कि वीपी सिंह बतौर पीएम दो साल भी पूरे नहीं कर पाए।


इसके बाद 10 दिसंबर, 1996 को प्रधानमंत्री देवेगौड़ा ने इस बिल पर हाथ आजमाया और सरकार से हाथ धो बैठे। आखिरी दांव 23 जुलाई 1998 को अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने चला लेकिन बिल पेश होने के कुछ ही दिन बाद सरकार महज एक वोट से गिर गई। बहरहाल, वाजपेयी लौट तो आए लेकिन 2001 में जब एनडीए सरकार ने फिर से बिल पेश किया तो वह अब तक रायसीना हिल पर राज करने का ख्वाब देख रही है।

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