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12 अगस्त 2011

फोटो फिचर: राखी का महत्व जाना, और बना लिया उम्र भर का रिश्ता

जोधपुर। कलेक्टर सिद्धार्थ महाजन के लिए भी रक्षाबंधन खास अहमियत रखता है। उनके सगी बहन नहीं थी। राखी पर दोस्तों की कलाइयों पर ढेर सारी राखियां देखते तो भावुक हो जाते। स्कूल में पढ़ने के दौरान राखी पर्व व उसकी महत्ता के बारे में जानकर दुखी हो जाते कि ‘किससे राखी बंधवाऊंगा?’ एक रक्षा बंधन की शाम दोस्तों की कलाइयों पर बंधी राखियां देख सिद्धार्थ उदास हो गए थे। इतने में पास ही रहने वाली नीलू थाली में कुमकुम, चावल, मौली, मिठाई और राखी लेकर आई। नीलू ने सिद्धार्थ की कलाई आगे कर जैसे ही राखी बांधी, सिद्धार्थ की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। फिर यह रिश्ता ऐसा जुड़ा कि अब उन्हें हर साल नीलू की राखी का इंतजार रहता है। आईएएस सिद्धार्थ कहीं भी रहें, नीलू उन्हें राखी बांधने पहुंचती हैं। लेकिन 22 साल में यह पहला मौका है, जब दिल्ली में निजी कंपनी में अफसर नीलू इस बार नहीं आ पा रही हैं। उसने डाक से राखी भिजवा दी है। दो दिन पहले गुरुवार को यह राखी उन्हें मिली।
जब भी याद आती है
सिद्धार्थ महाजन कहते हैं कि जब भी बहन की कमी महसूस होती है, नीलू से बात कर लेता हूं। उससे बात के बाद लगता ही नहीं कि सगी बहन नहीं है। नीलू ने भी सगी बहन का फर्ज पूरा किया है। दोनों नौकरीपेशा हैं इसलिए समय कम मिल पाता है लेकिन जब भी समय मिलता हैं मैं दिल्ली चला जाता हूं या वो अपने परिवार के साथ हमारे घर आ जाती हैं।
राखी पर बन गए कुछ यूं रिश्ते...


लव-कुश आश्रम में रहने वाली मंजू परिहार अनाथ है। उसके माता-पिता व भाई-बहन की मृत्यु के बाद पुलिस वाले इसे आश्रम में छोड़ गए थे। एक बार आश्रम में निजी बैंक के कार्यक्रम में अतिथियों के अल्पाहार की व्यवस्था बैंक के धर्मेंद्र जोशी अकेले ही कर रहे थे। उन्हें अकेला देखकर मंजू ने उनकी मदद की। बाद में राखी के मौके पर उन्होंने मुझसे राखी बंधवाकर धर्म बहन बना लिया। पिछले दस वर्षो से वो मुझसे राखी बंधवाते आ रहे हैं। मंजू कहती हैं कि धर्मेंद्र उसे सगे भाई का प्यार देते हैं। उनका परिवार भी स्नेह देता है।

यह भाई-बहन के अटूट रिश्ते की पवित्र मिसाल है। दोनों ने एक कोख से जन्म तो नहीं लिया, लेकिन रेशम की डोर में एक बार बंधे तो रिश्ता अटूट बन गया। श्याम नगर में इस बार 96 साल की बालादेवी 76 साल के धर्मभाई भागचंद जैन की कलाई पर 50वीं बार रक्षा सूत्र बांधेंगी। दरअसल भागचंद बालादेवी के पति दीपचंद के मित्र थे। उनका घर आना-जाना था। वर्ष 1961 में बालादेवी ने पहली बार भागचंद के राखी बांधी थी। रक्षा बंधन का यह रिश्ता उम्र के इस पड़ाव पर भी जारी है। इतना ही नहीं बालादेवी को किसी कार्यवश लाडनूं व कोलकाता रहना पड़ा। उस दौरान रक्षा बंधन पर जब भाई को उन्होंने डाक से राखी भेजनी चाही तो भागचंद ने इनकार कर दिया। खुद ने बहन के पास जाकर राखी बंधवाई। भागचंद बिजनेसमैन हैं। यह भाई-बहन का प्यार है भागचंद का कहना है कि मित्र के निधन के बाद बाला दीदी टूट-सी गई थीं। उन्हें परिवार के सहारे की जरूरत थी। मैंने भाई का धर्म निभाया। मैं कहीं भी रहता हूं, दीदी की खबर अवश्य लेता हूं। यह बंधन इतना अटूट हो गया है कि 49 साल हो गए, एक भी राखी पर्व ऐसा नहीं गुजरा जब मैंने दीदी से रक्षा सूत्र नहीं बंधवाया। मेरे पुत्र बाला को बुआ का सम्मान देते हैं। पूरा परिवार उसे अपने से अलग नहीं मानता। ऐसे ही बाला मानती हंै कि रिश्ते तो निभाने से ही आगे बढ़ते हैं। मेरे बेटे-बहू भी इस रिश्ते को उतना ही सम्मान दे रहे हैं।

लंदन की कोरिन रोज ने जोधपुर के गोविंद को राखी बांधी है। रिसर्च के लिए भारत आई कोरिन ने छह साल पहले यहां रक्षाबंधन त्योहार मनाते देखा। उसका महत्व जाना तो उसने गोविंद को भाई बना लिया। रिश्ता ऐसा जुड़ा कि अब वह यहीं गोविंद के परिवार के साथ रहकर व्यवसाय में हाथ बंटाने लगीं।

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