एक सपना
ज़रा
तुम भी तो देखों
काँटों में
फूल केसे
खिलते हैं
ज़रा
तुम भी तो देखों ..
नाज़ुक फूलों की
काँटों से
होती है
केसे हिफाज़त
ज़रा तुम भी तो देखो ....
ओह्ह में तो भूल ही गया
तुम तो संग दिल सनम हो
तुम्हे मेरे सपनों ,मेरे अरमानों से क्या
ऐसे में तुम यह देखो चाहे वोह देखो
मुझे क्या ........अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)