पौधों को दरकार सुरक्षा की भी
भास्कर की पड़ताल में सामने आया कि अब उनमें से दस फीसदी भी जीवित नहीं हैं। वजह साफ है, ज्यादातर स्कूलों में चारदीवारी नहीं है और आवारा मवेशी खुलेआम चरते रहते हैं। कहीं बच्चों के पीने के लिए ही पानी की व्यवस्था नहीं है तो पौधों को भला कौन पिलाएगा। ऐसे में सवाल उठता है कि बिना इंतजाम किए आखिर हर साल इतने पौधों की आहुति फिर क्यों दे दी जाती है। स्टूडेंट्स व शहरवासियों को प्रकृति प्रेम संदेश व अधिकाधिक पौधे लगाने की मुहिम हर साल होती है। पौधे लगाने के बाद स्थिति यह होती है कि उनकी प्रॉपर देखभाल व मॉनिटरिंग की भी उतनी ही जरूरत होती है।
आयोजन यहां: स्काउट गाइड एसोसिएशन की ओर से संभाग में सोमवार को पौधरोपण किया जाएगा। मंडल सचिव यज्ञ दत्त हाड़ा ने बताया कि कोटा में मुख्य आयोजन बारां रोड स्थित सैकर्ड स्कूल/ कॉलेज नया नोहरा में एवं मित्तल इंटरनेशनल स्कूल नया नोहरा में आयोजन किया जाएगा। आयोजन में संभागीय आयुक्त प्रीतमसिंह, कलेक्टर जीएल गुप्ता, विधायक भवानीसिंह राजावत, ओम बिरला, करणसिंह, चंद्रकांता मेघवाल, महापौर डॉ. रत्ना जैन, स्काउट-गाइड, स्टूडेंट्स सहित प्रबुद्ध नागरिक मौजूद रहेंगे। सीओ स्काउट प्रदीप चित्तौड़ा ने बताया कि शहर के स्कूलों में भी पौधरोपण कार्यक्रम होगा। अभियान के तहत पंचायत समिति सुल्तानपुर के राउप्रा स्कूल सुहाणा में जिला प्रमुख विद्याशंकर नंदवाना पौधरोपण करेंगे।
रोपने की ही नहीं सुरक्षा की जिम्मेदारी भी लें: पर्यावरणविदों का कहना है कि पौधरोपण की मुहिम तेज हुई है, यह अच्छी बात है लेकिन अब जरूरत इस बात की है कि हम उतने ही पौधे लगाएं जिनकी सुरक्षा कर सकते हों और जिन्हें पाल-पोषकर बड़ा कर सकते हों। दूसरा यह कि हम जितने पौधे लगाएं उनकी सेवा का संकल्प भी लें। विद्यार्थियों और शिक्षकों को इसकी जिम्मेदारी लेनी होगी।
सिर साटै रूंख बचे तो भी सस्तो जाण: झालावाड़ जिले के टांडी सोहनपुरा गांव के लोग यहां जंगल से पेड़ की टहनी तक नहीं काटने देते हैं। यहां एक पेड़ की टहनी काटने का मतलब इंसान के हाथ-पैर काटने जैसा समझा जाता है। यहां पर स्व. बापू भील ने पेड़ों की रक्षा का संकल्प लिया था। जिसे बाद में ग्रामीणों ने आपसी सहयोग से बरकरार रखा है। पहाड़ी पर बने जंगल में पेड़ की टहनी काटने पर भी पूरी तरह से प्रतिबंध है। यदि कोई टहनी भी काट देता है उस पर ग्रामीणों की पंचायत में जुर्माना वसूला जाता है। यहां के लोग भी सिर साटै रूंख बचे तो भी सस्तो जाण यानी सिर कटवाकर भी पेड़ को बचाया जा सके तो सस्ता समझो, इस बात का अक्सर हवाला देते हैं।
पिछले साल रोपे थे एक लाख पौधे: पिछले साल सघन वृक्षारोपण अभियान के तहत अलग-अलग विभागों की ओर से एक लाख पौधे रोपे गए थे। अब इन पौधों की स्थिति यह है कि कहीं पर तो ट्री गार्ड नहीं है और कहीं लगाने के बाद सुध तक नहीं ली और लोग भूल गए। वन विभाग और शिक्षा विभाग के अधिकारियों की मानें तो पिछले साल लगाए पौधों में दस फीसदी से ज्यादा जीवित नहीं बचे हैं
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