मंत्री की जांच करो, गुमनाम नहीं हूं मैं
भास्कर ने शिकायतकर्ता को खोज निकाला है। शिकायतकर्ता रामेश्वरलाल चौधरी हैं। वे खुद को कांग्रेस का कार्यकर्ता बताते हैं और शांतिनगर, गुर्जर की थड़ी, जयपुर में रहते हैं। यह शिकायतकर्ता भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के अफसरों के महीनों चक्कर लगाता रहा, लेकिन ब्यूरो ने गुमनाम बताकर मामले में एफआर लगा दी। यह हैरानीजनक जानकारी ब्यूरो के अपने ही दस्तावेजों से पुष्ट होती है। भास्कर ने इस विवाद से संबंधित सभी तरह के दस्तावेजों को हासिल करने के बाद मूल शिकायतकर्ता से संपर्क किया तो उसने कहा कि वह चुप होकर नहीं बैठेगा।
क्या कहा था मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने: भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर गुमनाम पत्र मिले थे। इसे लेकर एसीबी से जांच करा ली गई, लेकिन कोई भी आरोप सही नहीं पाया गया और न ही पत्र भेजने वाले के बारे में कोई जानकारी मिल सकी।(15 मार्च 2011 को विधानसभा में बाबूलाल नागर पर गेहूं पिसाई में घपले के आरोपों पर स्पष्टीकरण देते हुए)
ऐसे किया गया शिकायत कर्ता को गुमराह: आरोप है कि शिकायत कर्ता को गुमराह किया गया। पहले भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई एक जानकारी में कहा : खाद्य राज्यमंत्री की ओर से की गई अनियमितताओं के बारे में आपकी ओर से 18 सितंबर 2010 को प्रेषित शिकायत को पूर्व में दर्ज परिवाद संख्या 114/2010 में शामिल किया गया है। परिवाद वर्तमान में सत्यापनाधीन है। - उमेश मिश्रा, तत्कालीन आईजी की ओर से चौधरी को 4 जनवरी 2011 को लिखा गया पत्र
शिकायत का सफर: प्रधानमंत्री कार्यालय का पत्र गृह विभाग को जांच के लिए भेजा गया। गृह विभाग ने 22 जून 2010 को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को जांच के निर्देश दिए। एसीबी ने 27 जुलाई 10 को मामला दर्ज कर यह जांच एडिशनल एसपी गोविंद देथा को सौंपी। देथा ने जांच के बाद 4 फरवरी 2011 को इस मामले में एफआर लगा दी।
क्या थे आरोप: खाद्य मंत्री बाबूलाल नागर के खिलाफ सस्ता आटा मुहैया करवाने की मुख्यमंत्री की योजना, मटर की दाल खरीदने और शुद्ध के लिए युद्ध की कार्रवाई में गड़बड़ियों को लेकर जांच शुरू हुई थी। इन मामलों में रसद विभाग के कुछ आला अफसरों के बारे में भी शिकायतें थीं। नागर और इन अफसरों को लेकर की गई शिकायतों पर राज्य सरकार के स्तर पर कार्रवाई नहीं हुई तो लोगों ने प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी को सीधे शिकायतें भेजी। इन्हीं के आधार पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने राज्य सरकार को सितंबर 2010 में जांच के निर्देश दिए थे।
एसीबी का बयान: हमें मिला ही नहीं शिकायतकर्ता, उसके आरोप भी झूठे थे
एसीबी के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक गोविंद देथा ने कहा कि शिकायतकर्ता गुमनाम था। मिला ही नहीं। उसके आरोप भी झूठे पाए गए। जिन टेंडरों को लेकर शिकायत थी, उन्हें मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने रद्द कर दिया था। काम हुआ ही नहीं, क्योंकि वर्क ऑर्डर ही जारी नहीं हुआ। जहां तक रामेश्वर चौधरी का सवाल है, उसकी कोई शिकायत मुझे नहीं मिली। शिकायत आती तो हम कार्रवाई क्यों नहीं करते।
शिकायतकर्ता की पुकार: मैं एसीबी के चक्कर काटता रहा, फिर भी गुमनाम बता दिया
मैं गुमनाम नहीं हूं। एसीबी के अफसरों के चक्कर लगा रहा था, लेकिन वे मेरे दस्तावेजों को दफ्तर दाखिल करते रहे। प्रधानमंत्री और सोनिया गांधी के पास भेजे गए पत्रों की रसीदें मेरे पास हैं। मामले को बंद करने से पहले मुझसे तथ्य तक नहीं मांगना यही बताता है कि यह सब सरकार के दबाव से हुआ है। मैं अदालत में जाऊंगा।
मंत्री की दलील: जांच में साबित हो गया- मुझे बदनाम करने की साजिश थी
मंत्री बाबूलाल नागर ने कहा कि मेरे खिलाफ झूठे आरोप लगाए गए थे। गुमनाम पत्रों के जरिए मुझे बदनाम करने की साजिश थी। जांच में सब साफ हो गया है। यह मामला प्राथमिक जांच के लायक भी नहीं निकला। रामेश्वर मेरा पुराना राजनीतिक विरोधी है। वह प्रधानमंत्री से लेकर पटवारी तक हर महीने मेरे खिलाफ 20 से 30 शिकायती पत्र लिखता है।
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