अद्भुत चमत्कार...3 साल ऐसा करके पा सकते हैं, अपनी मौत पर काबू !!
बंध का सीधा सा मतलब है मजबूत जोड़। जिस जालंधर बध की बात हम कर रहे हैं उसे कहीं-कहीं चिन बंध भी कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि इस बंध का अविष्कार प्रसिद्ध सिद्ध जालंधरिपाद नाथ ने किया था इसीलिए उनके नाम पर इसे जालंधर बंध कहते हैं।
योग से संबंधित प्रसिद्ध पुस्तकों की यह पुख्ता मान्यता है कि यह बंध मौत के जाल को भी काटने की ताकत रखता है। क्योंकि इससे दिमाग, दिल और मेरुदंड की नाडिय़ों में निरंतर रक्त संचार सुचारु रूप से संचालित होता रहता है, और जाहिर है कि रक्त संचरण की ऐसी व्यवस्था ही जीवित अवस्था के लिये सर्वाधिक अनिवार्य होती है।
जालंधर बंध की विधि
किसी भी सुखासन में बैठकर पूरक करके कुंभक करें और ठोड़ी को छाती के साथ दबाएं। इसे जालंधर बंध कहते हैं। सरल शब्दों में कहें तो कंठ को संकुचित करके हृदय में ठोड़ी को मजबूती के साथ लगाने का नाम जालंधर बंध है।
इसे करने के आश्वर्यजनक फायदे
1. योग शास्त्रों की निश्चित मान्यता है कि 3 वर्षों तक इस बंध विधिवत अभ्यास मौत के जाल को भी काटने की ताकत
रखता है।
2. इड़ा और पिंगला नाड़ी बंद होकर प्राण-अपान सुषुन्मा नाड़ी में प्रविष्ट होता है। इस कारण मस्तिष्क के दोनों हिस्सों में
सक्रियता बढ़ती है।
3. इससे गर्दन की मासपेशियों में रक्त का संचार होता है, जिससे उनमें दृढ़ता आती है तथा ताउम्र दर्द या जकडऩ की समस्या
दूर रहती है।
4. कंठ की रुकावट समाप्त होती है तथा व्यक्ति की बोली में गमक, आकर्षण और प्रभावशीलता बड़ती है।
5. मेरुदंड में खिंचाव होने से उसमें रक्त संचार तेजी से बढ़ता है, जिससे शरीर और मन दोनों को पूर्ण स्वास्थ और तेजस्विता
प्राप्त होती है।
6. इसके नियमित अभ्यास से सभी रोग दूर होते हैं और व्यक्ति सदा स्वस्थ बना रहता है।
प्रमुख सावाधानियां
-किसी अनुभवी जानकार योग विशेषज्ञ के मार्गदर्शन में ही किसी योगिक क्रिया की शुरुआत करना चाहिये।
-शुरू में स्वाभाविक श्वास ग्रहण करके जालंधर बंध लगाना चाहिए।
-यदि गले में किसी प्रकार की तकलीफ हो तो न लगाएं। शक्ति से बाहर श्वास ग्रहण करके जालंधर न लगाएं।
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