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17 जुलाई 2011

रघुनाथ मिश्र की कविता ...जरा खुलो तो ...

जरा खुलो तो बात बने
साफ़ धुलो   तो बात बने
बुझे बुझे खोए खोए हो
मिलो जुले तो बात बने
हे हांसिल क्या ,पड़े पड़े यूँ
हिलो डुलो तो बात   बने
भारी मन इकले हो यूँ ही
साथ चलो तो बात बने
हे मंशान उनके दिल की
तुम उबलो तो बात बने
भाता ही है यदि जलना
लो से जलो तो बात बने ...................रघुनाथ मिश्र ३ के ३० तलवंडी कोटा राजस्थान ..

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