आपका-अख्तर खान

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01 जुलाई 2011

तुम्हारे फुर्र से

दुनिया के 
झंझट से हम 
तन्हाई में 
जाकर बेठे थे ...
यादें बन कर 
यहाँ भी 
सताने आ गये ....
जब भी 
बंद करता हूँ 
आँखे 
ऐसा लगता है 
तुम आ गये 
और खोलता हूँ 
तो ना जाने क्यूँ 
तुम्हारे फुर्र से 
उढ़ जाने का गम 
रुला देता हैं ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. आने और फुर्र से
    उड़ जाने के चक्कर में
    एक झंझट को भूलते
    दूसरे में फंसते रहते

    जवाब देंहटाएं

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