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हालांकि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह खुद इस बिल के दायरे में आना चाहते थे लेकिन मंत्रिमंडल ने उनकी एक नहीं सुनी और मौजूदा पीएम को लोकपाल से बाहर रखने का फैसला किया। वैसे सरकार के इस फैसले के बाद उसकी मुश्किलें बढ़नी शुरू हो गई हैं। टीम अन्ना सरकार के इस फैसले और नए बिल के प्रावधानों से बेहद नाराज है। अन्ना हजारे ने कहा है कि सरकार ने सिर्फ मेरे साथ धोखा ही नहीं किया बल्कि देश को छला है। अन्ना ने कहा है कि सरकार के इस निर्णय के खिलाफ वह 16 अगस्त से धरने पर बैठेंगे। वहीं, किरण बेदी ने अपनी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि कैबिनेट ने जिस लोकपाल बिल को मंजूरी दी है, उसमें राजनेता के हितों का खयाल रखा गया है।
टीम अन्ना ने सरकार पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि प्रस्तावित लोकपाल बिल के मुताबिक गठित होने वाली समिति में ज़्यादातर लोग सरकार से जुड़े होंगे। टीम के अहम सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकारी लोकपाल बिल देश के साथ क्रूर मजाक है। उन्होंने कहा कि सरकारी लोकपाल बिल के दायरे में कॉमनवेल्थ खेल घोटाला, सांसद रिश्वत कांड, कैश फॉर वोट जैसे मामले नहीं आएंगे। अरविंद केजरीवाल ने पूछा, क्या सरकार अपने सवा करोड़ कर्मचारियों को भ्रष्टाचार के लिए खुला छोड़ देगी? सरकार को इन सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार पर रोक लगाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए? केजरीवाल के मुताबिक प्रस्तावित बिल देश में एक और कानून की तरह ही होगा और इससे कुछ रिटायर नौकरशाहों और जजों को काम मिल जाएगा। वहीं, किरण बेदी और प्रशांत भूषण ने भी सरकारी बिल की तीखी आलोचना की है। किरण बेदी ने इस मौके पर कहा कि प्रस्तावित लोकपाल बिल के मुताबिक शिकायत सुनने के लिए सेल नहीं बनेगा और भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने वाले को किसी तरह की सुरक्षा या प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। वहीं, 'इंडिया अगेंस्ट करप्शन' की वेबसाइट पर टीम अन्ना ने सरकारी लोकपाल बिल की तीखी आलोचना की है। वेबसाइट के मुताबिक प्रस्तावित बिल आम आदमी की लडा़ई नहीं लड़ेगा (वेबसाइट के मुताबिक प्रस्तावित लोकपाल बिल क्या नहीं कर पाएगा, यह जानने के लिए रिलेटेड आर्टिकल की पहली खबर पर क्लिक करें)।
वहीं, कैबिनेट की लोकपाल बिल पर मंजूरी के बाद लेफ्ट ने इसे काफी कमजोर बताया है। पार्टी की नेता वृंदा करात ने कहा है कि प्रस्तावित बिल भ्रष्टाचार से लड़ाई में बहुत कमजोर साबित होगा। हालांकि, उन्होंने कहा कि न्यायपालिका को इसके दायरे से बाहर रखना चाहिए।
दूसरी ओर केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला ने कि टीम अन्ना को यह हक नहीं है कि वह किसी सरकारी ड्राफ्ट को अंतिम रूप दे। इससे पहले कैबिनेट के फैसले पर सरकार का पक्ष रखते हुए केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और अंबिका सोनी ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि लोकपाल बिल के दायरे में पूर्व प्रधानमंत्री आएंगे। सरकार का दावा है कि नए बिल में शीर्ष पदों पर आसीन लोगों को भी जबाबदेह बनाया गया है। कैबिनेट ने इस बात का भी ध्यान रखा कि लोकपाल से प्रशासनिक व्यवस्था को भी नुकसान न पहुंचे इस लिए सात साल की समयसीमा तय की गई है। इस समयसीमा में प्रधानमंत्री भी शामिल होंगे।
सलमान खुर्शीद ने कहा कि जन लोकपाल बिल में शक्ति के बंटवारे का प्रावधान है, लेकिन कैबिनेट ने जिस ड्राफ्ट को मंजूरी दी है, उसमें ऐसा नहीं है। खुर्शीद ने तर्क दिया कि जैसे प्रधानमंत्री या संसद अपनी शक्तियां किसी के साथ साझा नहीं कर सकती वैसे ही लोकपाल को भी ऐसा नहीं करना चाहिए। लोकपाल की व्यवस्था अलग रहेगी और न्यायपालिका की व्यवस्था अलग रहेगी। इसी दौरान केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने बताया कि न्यायपालिका में पारदर्शिता लाने के लिए सरकार ज्यूडिशयल अकाउंटेबिलिटी बिल ला रही है।
इससे पहले गुरुवार को हुई कैबिनेट मीटिंग में सिविल सोसाइटी और सरकार के प्रतिनिधियों के मसौदे में फर्क पर चर्चा की गई। यह चर्चा दो घंटों तक चली। प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाया जाए या नहीं, बहस का मुख्य मुद्दा यही रहा। प्रधानमंत्री ने खुद इस मुद्दे पर मीटिंग के दौरान कहा, 'अगर आप सभी लोग चाहते हैं, तो मैं मुझे कोई समस्या नहीं है। मैं यह निर्णय कैबिनेट पर छोड़ता हूं।'
आपकी राय
क्या आप लोकपाल बिल के दायरे से पीएम और न्यायपालिका को बाहर रखे जाने से सहमत हैं? क्या टीम अन्ना के ड्राफ्ट को सरकार ने अनदेखा कर दिया है? क्या ऐसा लोकपाल आपको मंजूर होगा? इन मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करने के लिए नीचे क्लिक करें।
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