मुझे
सरे राह
पत्थर से
संग सार कर
लहुलुहान करने वालों
तुम
मन्दिर और मस्जिद
बनाने तो निकले हो
लेकिन
मेरे लहू के छींटे
जिस पत्थर पर ना हो
वोह पत्थर तो
तलाश कर लाओ यारों .................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
बहुत गज़ब!!
जवाब देंहटाएंअख्तर भाई,कमाल की रचना है, लाजवाब वार्ता की 401 वीं पोस्ट पर स्वागत है।
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