आपका-अख्तर खान

हमें चाहने वाले मित्र

21 जून 2011

तुम और तुम ही रहते हो ............

चाँद को में 
जब जब भी 
देखता हूँ 
ना जाने क्यूँ 
चाँद मुझसे 
शरमा  जाता है ..
सूरज को में 
जब  जब भी 
घूरता हूँ 
ना जाने क्यूँ 
सूरज मुझ से 
घबरा जाता है 
पर्वत को मेने 
जब भी देखा है 
ना जाने क्यूँ 
पर्वत पिघल जाता है 
असमान को देखता हूँ 
जब भी में 
आसमान है 
के अपनी जगह से चला जाता है 
ऐसा क्या है मुझ में 
ऐसा क्या है मेरी नजरों में 
शायद यह सब इसलियें होता है 
के हमारी नजरों में 
हरदम 
तुम और तुम ही रहते हो 
इसीलियें तो चाँद.सूरज.पहाड़ आसमान 
तुम्हारे तेज के आगे 
ठहर नहीं पाते हैं ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...