कोन हो
तुम मेरे
जो
बालपन से ही
बुढापे तक
मेरे साथ लगे हो
मेरी आस बने हो
जब में रोता हूँ
तुम तडपते हो
जब में हंसता हूँ
तुम ख़ुशी से
झूम उठते हो
बस में जब भी
तुम से
मुझ से मुझे
मिलाने को कहता हूँ
हां तुम , हाँ तुम
कतरा कर निकल जाते हो
जब भी एकांत में
तुम से में
अपने दिल की बात
कहना चाहता हूँ
तुम यूँ ही
चल हठ कहते हुए
मुस्कुरा कर
निकल जाते हो ..
में नहीं समझा
तुम्हे आज तक
तुम
जब होते हो
तब भी
जब नहीं होते हो
तब भी
मुझे मिलन की आस में
कभी तडपते हो
कभी रुलाते हो
आखिर कोन हो तुम मेरे ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंbhut hi khubsurat...
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