आपका-अख्तर खान

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29 जून 2011

आखिर कोन हो तुम मेरे

कोन हो 
तुम मेरे 
जो 
बालपन से ही 
बुढापे तक 
मेरे साथ लगे हो 
मेरी आस बने हो 
जब में रोता हूँ 
तुम तडपते हो 
जब में हंसता  हूँ 
तुम ख़ुशी से 
झूम उठते हो 
बस में जब भी 
तुम से 
मुझ से मुझे 
मिलाने को कहता हूँ 
हां तुम , हाँ तुम 
कतरा कर निकल जाते हो 
जब भी एकांत में 
तुम से में 
अपने दिल की बात 
कहना चाहता हूँ 
तुम यूँ ही 
चल हठ कहते हुए 
मुस्कुरा कर 
निकल जाते हो ..
में नहीं समझा 
तुम्हे आज तक 
तुम 
जब होते हो 
तब भी 
जब नहीं होते हो 
तब भी 
मुझे मिलन की आस में 
कभी तडपते हो 
कभी रुलाते हो  
आखिर कोन हो तुम मेरे ................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

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