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12 जून 2011

बाबा रामदेव के साथ देश भी हार गया ................

बाबा रामदेव के साथ देश भी हार गया ................जी हा दोस्तों यह सच है देश में कहावत है के जो खुद कांच के घरों में रहते है वोह दुसरे के घरों पर पत्थर नहीं उछालते और यही सब बाबा रामदेव जी के साथ होता नज़र आ रहा है सब जानते हैं वर्तमान कोंग्रेस अंग्रेजों से भी जालिमाना हरकतों और लूटपाट पर उतर रही है ऐसे में बाबा के लोकहित और राष्ट्र हित में सरकार से टकराना जनता को और मुझे भी बहुत अच्छा लगा था ...लेकिन अनशन के दोरान जनता को बाबा से पहले सिम्पेथी हुई और फिर सिम्पेथी के साथ सरकार से नफरत होने लगी थोड़े बहुत क्षण में ही कुछ कमाल होने वाला था जनता जीतती और सरकार हारती लेकिन अचानक एक नाटकीय परिवर्तन हुआ और बाबा सिर्फ बाबा रह गये जो बाबा जनता के सामने मरते दम तक अनशन रखने और देश की जायज़ मांगों को मनवाने के लियें लड़ी गयी इस लड़ाई में अपने प्राणों की आहुति देने की बात कर रहे थे आज व्ही बाबा अपनी लड़ाई हर गए और जी देश की जनता को उम्मीद की एक किरन दिखी थी वोह किरण अब धूमिल हो गयी है बाबा ने खुद के हित में एक साधुओं संतों के ताल मेल से जिस ड्रामाई अंदाज़ में अनशन तोडा है उससे कोंग्रेस और कोंग्रेस के बेईमान राष्ट्रद्रोह में लगे नेताओं के होसले बुलंद हुए हैं और सही मायनों में जनता का सर शर्म से नीचे झुक गया है ..अब देश में अन्ना हजारे को तो पहले से ही सब समझ गए है सरकार ने बाब और अन्ना को हराया और मस्त अब देखते हैं कई हजार सालों तक देश में क्या कुछ चलता है क्योंकि शीर्ष पर पहुंच कर बाबा रामदेव जिस तेज़ी से नीचे गिरे है अब वहां तक पहुंचें में इस लड़ाई सिपाहियों को वर्षों लग जायेंगे ...................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपने बिल्कुल सही लिखा है जनाब ।
    'करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' के तहत बाबा के पास अनुभव भी आ ही जाएगा । अस्ल बात मुददे और माददे की है।
    मुददा उनका ठीक है और माददा भी उचित खान पान के ज़रिए उनमें बढ़ ही जाएगा।
    अब जब कि बाबा ने खाना पीना शुरू कर ही दिया है और एक क्षत्रिय की तरह उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ने का ऐलान भी कर दिया है तो हालात का तक़ाज़ा है कि या तो वे पी. टी. ऊषा को अपना कोच बना लें या फिर क्षत्रियों की तरह वीरोचित भोजन ग्रहण करना शुरू कर दें ।
    क्या आदमी को बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ?

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  2. आपने बिल्कुल सही लिखा है जनाब ।
    'करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' के तहत बाबा के पास अनुभव भी आ ही जाएगा । अस्ल बात मुददे और माददे की है।
    मुददा उनका ठीक है और माददा भी उचित खान पान के ज़रिए उनमें बढ़ ही जाएगा।
    अब जब कि बाबा ने खाना पीना शुरू कर ही दिया है और एक क्षत्रिय की तरह उन्होंने अंतिम साँस तक लड़ने का ऐलान भी कर दिया है तो हालात का तक़ाज़ा है कि या तो वे पी. टी. ऊषा को अपना कोच बना लें या फिर क्षत्रियों की तरह वीरोचित भोजन ग्रहण करना शुरू कर दें ।
    क्या आदमी को बुज़दिल बना देता है लौकी का जूस ?

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  3. नर हो न निराश करो मन को
    वापस लाएगे सब काले धन को

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