दो गज जमीन भी नसीबी न हुई कुचे यार में ................दोस्तों आज़ादी के आन्दोलन के पहले जनक और मुग़ल सल्तनत के आखरी बादशाह बहादुर शाह जफर ने रंगून में केद कर देने के बाद देश भक्ति के रूप में देश में आखरी लम्हें नहीं गुज़र पाने के गम में यह लेने लिखी थीं हमारे देश के सुप्रसिद्ध एफ एम हुसेन साहब भी आखरी वक्त में जब लन्दन गए और इलाज के दोरान उनकी म्रत्यु ही तो निश्चित तोर पर उनके मन में भी यही कुछ लेने आई होंगी ऐसे मशहूर फनकार को श्रद्धांजलि ..............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
मशहूर पेंटर मकबूल फिदा हुसैन का लंदन में निधन
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मशहूर साहित्याकार राजेंद्र यादव ने हुसैन के बारे में बताया कि अंतिम वर्षों तक वो इतने सक्रिय, इतने चुस्त थे कि लगता नही नहीं था कि वो बूढ़े हो गए हैं। वो पिकासो के बाद सबसे बड़े पेंटर थे। भारत में जिस तरह उनके साथ व्यवहार हुआ वो शर्मनाक था। राम कथा पर जो सीरीज उन्होंने हैदराबाद में बनाई थी वो स्मरणीय है।
हुसैन को फोर्ब्स मैगजीन ने उन्हें पिकासो ऑफ इंडिया कहा था। उनका जन्म 1915 पंढरपूर में हुआ था। उनकी शुरुआती शिक्षा इंदौर में हुई। चित्रकारी के प्रति बचपन से ही रुझान को देखते हुए उन्होंने 1935 में मुंबई के जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में दाखिला लिया।
उनकी उपलब्धियों को देखते हुए 1966 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री से नवाजा। 1973 में उन्हें पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। भारत के सबसे महंगे पेंटर थे मकबूल फिदा हुसैन। 1973 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 1986 में राज्यसभा में मनोनित किये गए थे।
साल 1952 में ज्यूरिख में हुसैन की पहली प्रदर्शनी लगी। 1955 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। 1967 में पहली फिल्म बनाई थी ‘थ्रू द आइज ऑफ पेंटर’, और बॉलीवुड अदाकारा तब्बू के साथ मीनाक्षी बनाई।
पेंटर प्रणव प्रकाश ने हुसैन के निधन पर कहा कि उनकी मौत कला जगत के लिए बहुत भारी क्षति है।
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