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29 मई 2011

पुलिस थर्ड डिग्री सरकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का अपमान

पुलिस थर्ड डिग्री सरकारों द्वारा सुप्रीम कोर्ट का अपमान है और केंद्र व् राज्य सरकारें इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के कई दर्जन आदेश के बाद भी गम्भीर नहीं है ..थानों में यातनाएं झुंट को सच सच को झुंट करवाने की हिंसक कार्यवाही यूँ तो भारतीय दंड संहिता की धारा ३३० और ३३१ में अपराध है इस मामले में केन्द्रीय पुलिस अधिनियम २९ पुलिस एक्ट में भी सजा का प्रावधान है लेकिन वोह सब केवल थोड़ा सा मामूली है .........हाल ही में सभी टी वी चेनलों पर पूना के एक शख्स को नंगा कर बेरहमी से पीटने की वीडियो दिखाई गयी अब तक किसने यह अपराध किया वोह पुलिस कर्मी कहाँ है क्या उन्हें दंड मिला कुछ पता नहीं चल सका है पता भी केसे चलता सरकार ने और नेताओं ने समाज सेवी संगठनों ने वीडियों देखि और सो गए लेकिन थाने में हिंसा इस देश के लियें घातक है ...........हमारे देश में पुलिस जनता के साथ  या  अपराधी के साथ हिंसा ना करे इसके लियें मानवाधिकार आयोग और राज्य मानवाधिकार आयोग के सदस्यों और कर्मचारियों के ऊपर वेतन और दुसरे भत्तों पर करोड़ों करोड़ रूपये प्रतिमाह खर्च होते हैं ..विधिक सहायता समितियां बनाई गयी है ,..सुप्रीमकोर्ट ने डी के बसु वाले मामले में और फिर बाद में हिरासत में प्रताड़ना से रोकने के लियें २० बिंदु दिए हैं लेकिन इनकी पलना करने के लियें सरकारे और इसकी पालना करवाने वाली एजेंसियां गंभीर नहीं है नतीजा आये दिन पुलिस हिरासत  में मोते..बलात्कार , मारपिटाई और हिंसा की घटनाएँ आम हो गयी हैं .......पिछले दिनों प्रकाश सिंह नामक एक व्यक्ति की जनहित याचिका की सुनवाई के बाद सुप्रीमकोर्ट ने पुलिस को वर्दीवाला गुंडा कहते हुए पुलिस हिरासत में हिंसा और पुलिस की हरकतों को नियंत्रित करने के लियें सभी राज्यों को पुलिस कानून बनाने के निर्देश दिए थे .....राजस्थान ऐसा पहला राज्य था जहां इस सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद वर्ष २००६ में राजस्थान पुलिस अधिनियम बनाया गया जिसमे पुलिस आयोग,पुलिस प्रताड़ना की शिकायत सुनवाई प्रदेश स्तरीय और जिला क्षेत्रीय समितियों के गठन के प्रावधान रखे गए पुलिस कल्याण और हिंसा पर रोक के आवश्यक प्रावधान रखे गए ,,,वर्ष २००७ में राजस्थान में पुलिस नियम भी बनाये गए लेकिन ४ साल गुज़र जाने के बाद आज तक भी राजस्थान में अधिनियम को लागू नहीं किया गया है अधिसूचना जारी हुए ४ साल हो गए लेकिन राजस्थान में पुलिस हिंसा को रोकने के लियें क्षेत्रीय,जिला और राज्य स्तर की समितियों का गतःन नहीं किया गया है पुलिस पूरी तरह निरंकुश है और नतीजे राजस्थान में सामने हैं थाने में महिला से बलात्कार,पुलिस हिरासत में मोत ,फर्जी एंकाउन्टर की घटनाएँ और प्रतिक्रिया के जवाब में जनता द्वारा थानाधिकारी को जिंदा जला डालने की घटनाएँ आम हो गयी है .....किसी ने कहा है के ..ना समझोगे तो मिट जाओगे ...तुम्हारा निशा भी न होगा दास्तानों में .............. अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

2 टिप्‍पणियां:

  1. पुलिस के इस चरित्र को एक वास्तविक जनान्दोलन की जरूरत है।

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  2. अधिसूचनाएँ तो जारी कर दी जाती है पर उसपर अमल नहीं होता | धन्यवाद|

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