आपका-अख्तर खान

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21 मई 2011

यूँ ही तो लिखता हूँ में .....

यूँ ही तो लिखता हूँ में ....
शायद तुम्हें पता है 
इसीलियें 
मेरे हर लिखे खत को 
तुमने यूँ ही बिना पढ़े 
कचरा पात्र में डाला है 
शायद 
तुम्हें पता नहीं 
इन खतों में 
मेने माँ का प्यार 
बाप का आशीर्वाद 
बहना का प्यार 
और भाई का दुलार 
यूँ ही खत में लिख दिया था .
आज कचरा पात्र में पढ़े 
मेरे यह खत 
यूँ ही तो 
अपनी हर दास्ताँ 
तुमसे खे जा रहे हैं ...
शायद तुम यूँ ही समझते हो 
में तो यूँ ही लिखता हूँ मेरा क्या 
हां तुम सही तो समझते हो 
तभी तो मेरे इन खतों ने 
तुम्हें ना जगाया ना रुलाया 
ना ही इंसानियत का पाठ पढाया 
इन बेजान अल्फाजों का क्या 
इन्हें तो यूँ ही कचरे के ढेर में 
पढ़े रहने दो .....
बस एक वादा तो कर लो 
किसी और के खतों को फिर कभी 
ऐसे बेरहमी से फाड़ कर 
यूँ बिना पढ़े कूड़े में ना डालोगे ...................................
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान 

1 टिप्पणी:

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