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23 अप्रैल 2011

कोटा की बदहाल पत्रकारिता

सिद्धांतों और देशभक्ति की बात करने वाले लोग इन दिनों भूखे प्यासे अख़बार के दफ्तर के बाहर हडताल पर बेठे हैं और अपने खुद के लियें इन्साफ की मांग कर रहे हैं जिनके समर्थन में कोई नहीं आ रहा है अगर कोई समर्थन भी दे रहा है तो गुपचुप समर्थन दिया जा रहा है . 
राजस्थान में पत्रकारिता का स्तम्भ रहे कप्तान दुर्गा प्रसाद चोधरी ने अपने जीवन काल में पत्रकारिता के निर्धारित मापदन्डों को अपनाकर एक पोधा लगाया था जिसे आज़ादी के बाद नवज्योति के रूप में ऐसा वट वृक्ष बना दिया गया जिसकी छाँव में कई पत्रकार अपने मिशन को पूरा कर पेट पाल रहे थे , दोर बदला कप्तान साहब का स्वर्गवास हुआ और फिर अख़बार की बागडोर पहले दीनबन्धु जी और फिर उनके पुत्र और पुत्र वधु के हाथ में आ गयी अख़बार की शक्ल और लिखने का अंदाज़ बदल गया , दम घोटू माहोले में पत्रकारों ने मालिकों से माफ़ी मांगी और रिटायर होकर चल दिए कुछ ने खुद नोकरी छोड़ी कुछ को नोकरी छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया , सरकार से सांठ गाँठ हुई बढ़ी जमीन कोटा में हथियाई और फिर एक आलिशान भवन का उदघाटन राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने किया कोटा में देनिक नवज्योति के स्तम्भ पत्रकारिता के हीरो सुनील माथुर ने अख़बार छोड़ा और पंजाब केसरी में चले गए बस फिर किया था नवज्योति कर्मचारियों और पत्रकारों के आफत आ गयी उन्हें परेशान किया जाने लगा वेतन विसंगतियां तेज़ हुई जो कर्मचारी  खुद को नवज्योति अख़बार का कर्मचारी समझते थे उन्हें पता चला एके वोह तो नवज्योति न्यूज़ सर्विस और नवज्योति प्रिंटिग प्रेस के कर्मचारी है ,बाछावत और मनीसाना वेतन बोर्ड तो यहाँ देने का असवाल ही नहीं उठता ,बस अपने खून से देनिक नवज्योति अख़बार को सींचने वाले पत्रकारों और कर्मचारियों के सर से पानी ऊपर हुआ ओर मजबूरी में उन्हें हडताल पर आना पढ़ा ,कर्मचारी हडताल पर बेठे बहर के लोग समर्थन दें आये मालिकों के डर से बाहर से गुपचुप समर्थन देकर चल दिए , जो लोग कोटा के विकास , कोटा के नेताओं के किस्से जनता तक पहुंचाते रहे हैं कोटा के भ्रस्ताचार को उजागर करते रहे , कोटा की जनता को संघर्ष कर न्याय दिलाते रहे हैं , शोषण और उत्पीडन के खिलाफ जिन्होंने जंग लदी हो आज वाही नवज्योति के पत्रकार और कर्मचारी जब खुद पर आन पढ़ी है तो अलग थलग खुद को महसूस कर रहे हैं क्या ऐसी ही होती है पत्रकारिता , क्या यही है इन्साफ , क्या कोटा अमन श्रम विभाग जिला प्रशासन नाम की कोई चीज़ नहीं है जो इन लोगों को न्याय दिलवा सके इसीलियें कहते हैं के कोटा की  पत्रकारिता इन दिनों आया राम गयाराम की तरह हो गयी है और कोई भी पत्रकार इन दिनों सुरक्षित नहीं होने से यहाँ की पत्रकारिता बदहाल हैं . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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