आपका-अख्तर खान

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19 अप्रैल 2011

बिना स्याही के उसने क्या लिख दिया ......

एक दिन
उसने
बढ़ी मासूमियत से
मेरी
हथेली पर
अपनी
नाज़ुक सी
उँगलियों से
गुदगुदाते हुए
लिखा .........
मुझे प्यार है तुमसे
हाँ मुझे
प्यार है तुमसे .....
जाने
केसी स्याही थी वोह
मेरी हथेली पर
वोह लफ्ज़
दिखे भी नही
मिटे भी नहीं
बस
यह लिखावट
ना जाने क्यूँ आज भी
मेरे दिल पर नक्श हो गयी है ...............अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
    प्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
    कल (21-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
    देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
    अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।

    http://charchamanch.blogspot.com/

    उफ़ गज़ब कर दिया

    जवाब देंहटाएं
  2. pyar khuda ka beshkimati alfaz hai jo kahin likha nahi jata ,bas mahsus kiya jata hai . anmol bhav ,shabd -srijan . shukriya .

    जवाब देंहटाएं
  3. दिल से लिखी गई रचना दिल को छू गई। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सुन्दर एहसास ...खूबसूरत रचना

    जवाब देंहटाएं
  5. बेहद सरल और सुन्दरता से अभिव्यक्त भावाभिव्यक्ति प्रभावशाली है ..आभार !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही कोमल भावनाओं में रची-बसी खूबसूरत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  7. जाने
    केसी स्याही थी वोह
    मेरी हथेली पर
    वोह लफ्ज़
    दिखे भी नही
    मिटे भी नहीं jabardast

    जवाब देंहटाएं
  8. na jane kyu aisa lag raha hai ki maine apki ye poem pahle bhi shayed apke blog par padhi ho, kya pahle bhi post ki thi ? bahut acchhi anubhutiyon ko samete sunder srijan.

    aur lagta hai hamara rasta bhool gaye aap ?

    जवाब देंहटाएं

दोस्तों, कुछ गिले-शिकवे और कुछ सुझाव भी देते जाओ. जनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)

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