आपका-अख्तर खान

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01 अप्रैल 2011

नहले पर देहले केसे केसे .................

यारी दोस्ती प्यार और अपने पन में जो हंसी मजाक होता हे कई बार वोह नहले पर देहला होने से दोस्तों के लियें एक सबक बन जाता हे हमारे एक सहयोगी पर एक ऐसा ही देहला पढ़ा जिसके बाद वोह समझदार जेसे हो गये हें . 
      कच्ची उम्र ,माली उमर, नया खून किसी की नहीं सुनता हे इस उमर में वोह हर गम हर समझ से बेगाना होता हे और सोचता हे के वोह दुनिया का अंतिम समझदार व्यक्ति हे उसकी सोच होती हे के पूरी दुनिया में कुल डेढ़ अकाल होती हे जिसमे से एक अकाल उसमें खुद और आधी अकाल पूरी दुनिया में  होती हे . हमारे एक जूनियर साथी को  उनके हम उमर वकील साहब ने उनके बच्चे की पहली सालगिरह पर बुलाया और उनके बुलाने में जो आजिजी जो प्यार छुपा था उसको देख कर कोई भी इस प्रोग्राम में दुसरे सभी कामकाज छोड़ कर जरुर जाता लेकिन इत्तेफाक हे शादी जेसे माहोल में इन वकील साहब ने अपने बच्चे की पहली सालगिरह की और जो लोग नहीं आये उनको नामजद भी किया इत्तेफाक से हमारे जूनियर वकील साथी इस प्रोग्राम में नहीं जा पाए बस खुद को बचाने के लियें यह दुसरे दिन सुबह वकील साहब के घर पहुंचे और कहा के भिया शाम को सालगिरह के लियें हमारे लायक जो भी काम हो वोह बता देना ,बस हमारे जूनियर वकील साथी के तेवर तेज़ हो गए और वोह नाराज़ हो गये बस फिर क्या था बात तस्दीक तक जा पहुंची हमारे जूनियर साथी ने हमारे मुंशी से पेशी रजिस्टर में एक दिन बाद के कार्यक्रमों में इन जनाब वकील साहब की सालगिरह का कार्यक्रम लिखवा दिया और दोनों वकील जब पहुंचे और रजिस्टर देखा तो पेशी रजिस्टर में २८ तारीख देख कर दुसरे वकील साहब ने मुंह बना कर कहा के यह तो रजिस्टर में गलत लिखा हुआ हे खेर कोई बात नहीं कार्यक्रम तो कल ही हो गया लेकिन मेने इस भूल के लियें छोटे वकील साहब यानी हमारे सहयोगी वकील साहब को माफ़ कर दिया . दोस्तों अब बजी फिर पल्टी हमारे जूनियर वकील साहब की शादी का प्रोग्राम हुआ सभी बराबर के साथियों को कार्ड दिए गए जिन वकील साहब के बच्चे की सालगिरह में छोटे वकील साहब नहीं गए थे उन्हें भी घर जाकर माय परिवार दावत दी गयी और जिस दिन छोटे वकील साहब की शादी थी उस दिन वोह इधर उधर अपने इस साथी वकील को तलाशते रहे सोचा कोई बात नहीं फिर देखेंगे लेकिन यह क्या दुसरे दिन वही तरकीब यह वकील साहब दिन में छोटे वकील साहब के घर पहुंचे और बस कहने लगे के शाम को तो हम आ ही रहे हें अभी दिन में कोई काम हो तो बताएं बस हमारे छोटे वकील साहब यह सुनते ही समझ गए के यह इन जनाब ने नहले पर देहला मारा हे और फिर उन्होंने शपथ ले ली के आगे से वोह अब किसी की भावना के साथ खिलवाड़ कर हंसी मजाक नहीं करेंगे तो जनाब यह  नहले पर देहला एक जनाब के लियें सुधार का फार्मूला साबित हुआ हे . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

1 टिप्पणी:

  1. अख्तर भाई, नमस्कार bahut achha aur sahi likha hai aapne.आप को देख कर मैंने भी "दिल की बातें" नाम का ब्लॉग शुरू किया है. जरुर देखें और अपनी राय रखे. मुझे लिखने में मदद मिलेगी...
    "दिल की बातें" रमेश घिल्डियाल

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