एक अफ़सोस
जो आपको भी है
और मुझे भी
कुदरत ने
इन्सान को
परिंदों की उंचाई से भी
ज्यादा उड़ना सिखाया ,
मछली और मगर मच्छ से
तेज़ समुन्द्र में
तेरना सिखाया ,
इन्सान ने
नागिन जेसा
इठलाना भी सिखा
बस अफ़सोस यह है
के इंसान इंसान ना बन सका
उसे धर्म ग्रंथों , सामाजिक नियमों
से इंसानियत का किया बार
पाठ पढ़ाया
लेकिन देखलो
फिर भी हमें
इंसान बनना नहीं आया ....................अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
हर हुनर में माहिर, इसी एक में पीछे... इन्सान.
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (28-4-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
इंसान क्यों न बन पाया..सवाल है उलझा हुआ...
जवाब देंहटाएंमाया जाल में फस कर इन्सान इन्सान नहीं बन पाया| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंवाह वाह अकेला भाईजान। बहुत खूब लिखा।
जवाब देंहटाएं"बस अफ़सोस यह है
के इंसान इंसान ना बन सका
उसे धर्म ग्रंथों , सामाजिक नियमों
से इंसानियत का किया बार
पाठ पढ़ाया
लेकिन देखलो
फिर भी हमें
इंसान बनना नहीं आया ..."
ये बात जमाल को कभी समझ ना आई।
बहुत सुन्दर बात कही आपने।
उसे धर्म ग्रंथों , सामाजिक नियमों
जवाब देंहटाएंसे इंसानियत का किया बार
पाठ पढ़ाया
लेकिन देखलो
फिर भी हमें
इंसान बनना नहीं आया ..."ye sabal har kisiman me hai kiaakhir insaan q insaan nhi bana saka...bahut sunadar prastuti....
अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंgahan prastuti ..!!
जवाब देंहटाएंbahut achchha likha hai ..!!
फिर भी हमें
जवाब देंहटाएंइंसान बनना नहीं आया... kaas! ye ham ban pate...
बहुत सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआप की बहुत अच्छी प्रस्तुति. के लिए आपका बहुत बहुत आभार आपको ......... अनेकानेक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आने एवं अपना बहुमूल्य कमेन्ट देने के लिए धन्यवाद , ऐसे ही आशीर्वाद देते रहें
दिनेश पारीक
http://kuchtumkahokuchmekahu.blogspot.com/
http://vangaydinesh.blogspot.com/2011/04/blog-post_26.html