किसने लगाई आग और किस किस का घर जला
मेरे शहर के अमन में केसा कहर चला ।
क्या माजरा हे दोस्त,चलो हम पता करें
इस बेकसूर परिंदे का पर केसे जला ।
कुछ भेड़िये गमगीन हें इस खास प्रश्न पर
केसे खुलूस ओ प्यार में ,अब तक शहर चला ।
किसकी यह साजिशें हें ,हिमायत यह कोनकी
विष घोल फजाओं में , चुरा जो नजर चला ।
कल शाम हुए हादसों पे हो चुकी बहस
हे प्रश्न इसी दोर का आखिर किधर भला।
जनवादी लेखक संघ के रघनाथ मिश्र कोटा की यह गजल आप भाइयों और बहनों की खिदमत में पेश हे ।
सितम उनकी आदत हे क्या करें
अजीब यह नजाकत हे क्या करें
वेह महफूज़ हें फिर आग लगा कर
उन्हें यह रियायत हे क्या करें
आदत हे अपनी आजकल तूफ़ान से उलझना
इसमें ही हिफाजत हे क्या करें
लागू कराई जाये भेडियों की सभ्यता
यह खास हिदायत हे क्या करें
बेखोफ ज़ुल्म साज़ुशें दहशतजदा माहोल
यह रंग ऐ सियासत हे क्या करें ।
रघुनाथ मिश्र कोटा राजस्थान
संकलन अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
तुम अपने किरदार को इतना बुलंद करो कि दूसरे मज़हब के लोग देख कर कहें कि अगर उम्मत ऐसी होती है,तो नबी कैसे होंगे? गगन बेच देंगे,पवन बेच देंगे,चमन बेच देंगे,सुमन बेच देंगे.कलम के सच्चे सिपाही अगर सो गए तो वतन के मसीहा वतन बेच देंगे.
01 मार्च 2011
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bahut achchhi post .
जवाब देंहटाएंश्रीमान जी, आपने ब्लॉग के अंत में कृपया निम्नलिखित वाक्य हिंदी में लगाये इससे ब्लॉग अच्छा हो जायेगा.
जवाब देंहटाएंजनाब! मेरा यह ब्लॉग आप सभी भाईयों का अपना ब्लॉग है. इसमें आपका स्वागत है. इसकी गलतियों (दोषों व कमियों) को सुधारने के लिए मेहरबानी करके मुझे सुझाव दें. मैं आपका आभारी रहूँगा. अख्तर खान "अकेला" कोटा(राजस्थान)