आपका-अख्तर खान

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03 मार्च 2011

वन्दना जी की एक बहतरीन रचना पेश हे

पता नहीं क्यों…………
पता नहीं क्यों
बसते हो तुम मुझमे
कितनी बार चाहा
तोड़ दूँ चाहत का भरम
हर बार तुम्हारी चाहत
मुझे कमजोर कर गयी

पता नहीं क्यों

इतना चाहते हो मुझे
कितनी बार चाहा
भूल जाओ तुम मुझे
हर बार तुम्हारा प्यार
मंजिल से मिला गया

पता नहीं क्यों

याद करते हो मुझे
कितनी बार चाहा
लगा दूँ ताला

दिल के दरवाज़े पर
हर बार तुम्हारी

भीगी नज़रें
भिगो गयीं मुझे
और मैं

तेरे प्रेम के आगे
खुद से हार गयी
..... वन्दना जी की प्रस्तुती जिसे पढ़ते ही हर इंसान के मुंह से वाह निकल जाए । अख्तर खान खान अकेला कोटा राजस्थान

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