इंसान तू खुद सोच ले तू किधर जा रहा हे मानव का मस्तिष्क और अंतर्मन झकझोर देने वाला यह फलसफा खुद को खुद के गिरेबान में झाँक कर देखने का यह फलसफा अपने बारे में खुद ही जजमेंट करने का दर्शन रघुनाथ मिश्र कोटा विशाल ह्रदय कवि ने अपनी किताब सोच ले तू किधर जा रहा हे के रूप में दिया हे ।
कोटा जलेस के पदाधिकारी रघुनाथ मिश्र कोमरेड.कम्युनिस्ट,समाजसेवी,पत्रकार,साहित्यकार,मजदूर नेता और वकील होने के साथ साथ एक ऐसे इंसान हे जो खुद इंसानियत की खोज में निकले हें और गली मोहल्लों में इंसानियत बाँट रहे हे लोगों की दुःख तकलीफ को केसे हरा जाए इसके लिए वोह अपने लेखन दर्शन से लोगों को ज्ञान बाँट रहे हें ,मिश्र जी की इसी कलमकारी इसी सोच के चलते हाल ही में उन्हें दो राष्ट्रिय साहित्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया हे और उन्होंने कोटा का ही नही राजस्थान का भी गोरव बढाया हे ।
जनवादी लेखक संघ कोटा के जलेस प्रकाशन ३ के ३० तलवंडी कोटा राजस्थान से प्रकाशित पुस्तक सोच ले तू किधर जा रहा हे की साज सज्जा सानिध्य कम्प्यूटर ने की हे जो हिन्दू उर्दू गजलों का संग्रह हे । २ जुलाई १९५२ में ग्राम चंदा पार जिला बस्ती उत्तर प्रदेश में जन्मे मिश्र राजनीति शास्त्र में एम ऐ हें उन्होंने हिंदी साहित्य में विशारद किया हे और विधि स्नातक के बाद फिर उन्होंने श्रम कानून में डिप्लोमा किया हे पढने के और सेवा करने के मिश्र के बचपन के शोक ने उन्हें जनता के फलसफे को समझने उनके दुःख दर्दों को बांटने का शोकीन बना दिया और इनके इसी शोक ने मिश्र को कोटा में जे के उध्ह्योग में श्रम अधिकारी के पद पर नियुक्त करवा दिया जहां मिश्र ने श्रमिको और प्रबंधकों के बीच सेतु बन कर कम किया ।
मिश्र के साहित्यिक शोक की वजह से ही वर्ष १९६७ में इनके नाम से एक संस्थान स्थापित किया और फिर मिश्र का लेखन जो शुरू हुआ वोह आज तक बदस्तूर जारी हे कभी लेख ,कभी कहानी कभी घटना प्रधान सच तो कभी कविताये तो कभी गजलें बस जन समस्याओं और हालातों पर लिखते रहें का ही दुसरा नाम रघुनाथ मिश्र हे .१९७५ से जनवादी साहित्य के भागीदार रहें के बाद इन्होने १९८० में जनवादी लेखक संघ की स्थापना की और फिर आल इण्डिया लोयर्स यूनियन के कोटा प्रभारी नियुक्त किये गये ,भाई रघुनाथ मिश्र का बचपन डेढ़ वर्ष की आयु में ही सुना हो गया माता की म्रत्यु डेढ़ वर्ष की आयु में तो सैट वर्ष की आयु में पिता चल बसे और इसीलियें अभावों के चलते भाई रघुनाथ मिश्र को इस संघर्ष के दोरान दुनिया से बहुत कुछ सीखने को मिला जो दुनिया से उनको सीखने को मिला उसका कडवापन तो उन्होंने पी लिया लेकिन जो मिठास हे वोह आज भी लोगों में बाँट रहे हें । ५० से भी अधिक रचनाओं का प्रकाशन उनकी इस पुस्तक में हे जिसमें वेह अतीत वेह वर्तमान हे , बेमानी हें परिभाषाएं,कह रहे हें के मोसम खुश गवार हे ,कोन कहता हे मजा जोखिम के डर जाने में हे , किसने लगाई आग , क्यं समझने की कोशिश नहीं की ,कल झुग्गियां जली थीं,कर डाला जो बचकाने में , सोच ले तू किधर जा रहा हे , प्रतिबंधित आंसू , सितम उनकी आदत हे , प्यार अब गलने लगे हें ,कितने हो गये तबाह अब हम तलाशेंगे ,केसे आये हमको हंसी , क्या कहता किसकी कमी, फंस गयी फिर से भंवर में , आज़ाद हे वतन सही ,गरीब के उस कत्ल पे ,सुर्ख अंगारों पे , मेहनत कशों की सांस में ,आओ हिल मिल कर प्यार करें ,जिंदगी बद हवस सी लगती हे ,वोह हमसे मिलते आए हें जेसी प्रमुख रचनाए शामिल हें जो दिल की गहराइयों को छूकर हर वर्ग हर समाज के लोगों को सीख दे रही हे जिनके हर शब्द हर अलफ़ाज़ लोगों के सीने में समाज के इन हालातों का दर्शन बन कर चीख बन कर चुभ गये हे और सभी लोग इन रचनाओं को पढ़ कर समाज में इंसाफ और समाज सेवा की तलाश में जुट जाते हें ।
राज़ यह समझ लो तुम यह नहीं बदलते हें
सांप हें यह जहरीले आदमी को यह डसते हें ,
निराशा में सुख का सामन खोजते हें
गम हो गये हालात में इन्सान खोजते हें
सुर्ख अंगारों पे नंगे पग चला हे आदमी
ज़ुल्मतों के दोर में तिल तिल जला हे आदमी
साज़िशे वारदात को अंजाम दे दिया
बेकारों को आतंकियों ने काम दे दिया
दे दी गयी म़ोत हजारों को इक इशारे पे
इस बात पर करोड़ों का इनाम दे दिया
तो जनाब यह हें कोटा राजस्थान की एक शख्सियत जो उत्तर प्रदेश में पाले बढ़े और अब कोटा में साहित्यिक खिदमत कर रहे हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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