आपका-अख्तर खान

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17 मार्च 2011

यह जो जमीन पर पढ़े हें

यह जो दरख्त 
जमीन पर यूँ 
नीचे पढ़े हें 
कल तक 
यूँ सीना ताने खड़े थे 
शायद उन्हें आँधियों का 
जरा भी अंदाजा ना था , 
यह जो पत्ते 
आज इस पढ़ से 
सुख कर  जो गिरे हें 
शायद उनकी हरियाली जवानी में 
वोह इस तरह से गिरेंगे नीचे 
उन्हें अंदाजा ना था 
इसके पहले 
इस हकीकत को हम जान लें 
उठें जमीन से थोडा थोड़ा झुक कर 
लोगों को अपना कर लें . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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