यह जो दरख्त
जमीन पर यूँ
नीचे पढ़े हें
कल तक
यूँ सीना ताने खड़े थे
शायद उन्हें आँधियों का
जरा भी अंदाजा ना था ,
यह जो पत्ते
आज इस पढ़ से
सुख कर जो गिरे हें
शायद उनकी हरियाली जवानी में
वोह इस तरह से गिरेंगे नीचे
उन्हें अंदाजा ना था
इसके पहले
इस हकीकत को हम जान लें
उठें जमीन से थोडा थोड़ा झुक कर
लोगों को अपना कर लें . अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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