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17 मार्च 2011

हम खुद ही तो गिरे हें

 किस्से कहें 
हम जमीन पर गिरे हें 
क्या कहें 
हम खुद ही तो गिरे हें 
हम ही तो हें 
जो चढ़ गये थे 
खुले आम भ्रस्ताचार के पढ़ पर 
हम ही तो हे 
जो चल गये थे 
राष्ट्रविरोधी रास्तों पर 
हम ही तो हें 
जो खुद फेला रहे हें 
नफरत , कत्ले आम 
फिर क्यूँ 
यूँ फर्श पर गिरे पढ़े 
हम तड़पते हें 
बस हम ही तो हें 
जो खुद हाँ खुद 
अपनी मर्जी से यूँ निचे गिरे हें , 
तो आओ जरा सोच लो दोस्तों 
अब कुछ ऐसा करें के उठें 
और फिर एक नई राह नई डगर बनाये 
और उस पर चल पढ़ें . 
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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