किस्से कहें
हम जमीन पर गिरे हें
क्या कहें
हम खुद ही तो गिरे हें
हम ही तो हें
जो चढ़ गये थे
खुले आम भ्रस्ताचार के पढ़ पर
हम ही तो हे
जो चल गये थे
राष्ट्रविरोधी रास्तों पर
हम ही तो हें
जो खुद फेला रहे हें
नफरत , कत्ले आम
फिर क्यूँ
यूँ फर्श पर गिरे पढ़े
हम तड़पते हें
बस हम ही तो हें
जो खुद हाँ खुद
अपनी मर्जी से यूँ निचे गिरे हें ,
तो आओ जरा सोच लो दोस्तों
अब कुछ ऐसा करें के उठें
और फिर एक नई राह नई डगर बनाये
और उस पर चल पढ़ें .
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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