तुम्हें पता हे
कई वर्षों से
में तुम्हारा
खिदमतगार हूँ
कई सालों से
में तुम्हारा
सिर्फ तुम्हारा
तलबगार हूँ
मेरी इस
चाहत के बदले
आज मुझे
बस इतना इनाम दे दो
वोह देखो
आशियाना जल रहा हे
तुम्हारी याद में मेरा
थोड़ा जल्दी जल जाए
इसलियें उठो
बस वहां थोड़ी से हवा दे दो
में तुम्हारा खिदमतगार
तुम्हारा तलबगार रहा हूँ
बस मुझे माँगा हे जो मेने
वोह इनाम दे दो ...................
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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