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30 मार्च 2011

पत्नी पीड़ितों का जुर्माना बच गया

देश में महिलाओं खासकर पत्नियों से पीड़ित पतियों के संगठन पत्नी पीड़ित संघ के अध्यक्ष दशरथ देवड़ा को गुजरात हाईकोर्ट ने एक याचिका पर लगे जुर्माने एक लाख रूपये को कम कर पांच हजार रूपये कर दिया हे और पत्नी पीड़ितों को मामूली सी राहत दी हे . 
दोस्तों वेसे तो देश भर में पत्नी पीड़ितों की भरमार हे और आप जब यह पोस्ट पढ़ रहे होंगे तो हो सकता हे जो दिल पर आपके गुजरी हे उससे इसे जोड़ कर देख रहे होंगे खेर खुदा करे पत्नी पीड़ितों की संख्या कम हो लेकिन जो पत्नी पीड़ित हें उनमें से कुछ ने गुजरात में पिछले दिनों एक बढ़ी रेली निकाल कर प्रदर्शन भी किया था और एक याचिका पेश कर हाईकोर्ट से मांग की थी की आई पी सी की धारा ४९८अ को बदला जाए इसमें जो पत्निया अपने पति को प्रताड़ित करती हे और पति की आत्महत्या के लियें ज़िम्मेदार होती हे उन्हें भी दंडित करने के प्रावधान जोड़े जाए , गुजरात हाईकोर्ट की एकल पीठ ने इस याचिका को अवमानना मानते हुए एक लाख रूपये के जुर्माने के साथ ख़ारिज की थी पत्नी पीड़ित संघ इस जुर्माने से आहत था और उसने डबल बेंच के समक्ष अपील की थी और इस अपील की सुनवाई पर हाईकोर्ट के दो जजों ने पत्नी पीड़ितों को राहत देते हूँ जुर्माने की राशि एक लाख से कम कर पांच हजार रूपये कर दिया हे और चेतावनी दी हे के वोह पारिवारिक न्यायालयों में महिलाओं पर जाकर दबाव नहीं बनायेंगे . 
पत्नी पीड़ितों की इस दास्ताँ से शायद किसी हद तक आप भी सहमत होंगे सो फीसदी पति ही अत्याचार के ज़िम्मेदार हों यह सही नहीं हो सकता कई बार पत्नियां भी पति को उत्पीडित करती हे और पतियों और रिश्तेदारों को अनावश्यक अपमानित और प्रताड़ित होना पढ़ता हे ऐसे में इस कानून और इसके संशोधन की समीक्षा के लियें देश के विधि मंत्रालय और केन्द्रीय विधि आयोग को सभी राज्यों से सम्बन्धित मुकदमों उनके नतीजों आरोप प्रत्यारोप की रिपोर्ट मंगवाकर एक निति निर्धारित करना चाहिए जिसमें अगर पुरुष और उसके रिश्तेदार दोषी हो तो बख्शे नहीं जाए और पत्नी अगर दोषी हो तो उसे भी नहीं बख्शा जाए वेसे इस मामले में देश में घरेलू हिंसा कानून एक रामबाण साबित हो सकता हे लेकिन राज्य सरकारें इस कानून की पालना सुनिश्चित करवा पाने में असफल रही हे इस कानून के तहत सरकार खुद घर घर जाकर महिला उत्पीडन की रिपोर्ट लेगी और अगर महिला उत्पीडित दिखती हे तो पहले समझायश होगी और फिर असफल होने पर मजबूरी में ही आरोपी के खिलाफ मुकदमा दर्ज होगा पत्नी को मकान गुज़ारा खर्च दिलवाया जाएगा इस कानून को अगर लागू शत प्रतिशत किया जाए तो कई घर बिगड़ने से बच जायेंगे और पतियों को भी राहत मिलेगी जबकि पत्नियां और बहुएँ सुरक्षित हो सकेंगी . एक सच यह हे के वर्ष २००३ में घरेलू हिंसा कानून लागू किया गया हे जिसमें सरकारी स्टर पर ही खुद के खर्चे से प्रोटेक्शन अधिकारी द्वारा ही पीड़ित महिला की तरफ से प्रार्थना पत्र पेश करने का प्रावधान हे लेकिन कोटा ,राजस्थान और पुरे देश में इस कानून के तहत खुद प्रोटेक्शन ऑफिसर ने इस कानून को लागू हुए आठ साल गुज़र जाने के बाद भी आज तक एक भी प्रार्थना पत्र महिला की तरफ से पेश नहीं किया हे तो फिर ऐसे कानून बनाने से क्या फायदा जो उत्पीडित महिलाओं को न्याय दिलवाने में और खर्च और परेशानी का इजाफा करें महिलाओं को आज तक खुद ही वकील करके अपने खर्चे से मुकदमे पेश करना पढ़ रहे हें जो काफी तकलीफ देह और प्रकरण को लम्बा कर देने वाले हो जाते हें ................ अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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