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02 फ़रवरी 2011

९२ साल की एक विधवा और पेंशन के ६१ साल

देश की सरकारें केसी ही य्हना दलित,गरीबों,विधवाओं और तलाक शुदा के साथ केसा सुलूक होता हे यह तो सब जानते हें लेकिन डियूटी पर मरने वाले एक थानेदार जी की विधवा को पारिवारिक पेंशन के लियें ६१ साल टक इन्तिज़ार करना पढ़ा जिसे कल हाईकोर्ट ने न्याय दिलवाया हे , इस बीच राजस्थान में पुलिस नोकरी से निकले भेरो सिंह जी शेखावत भी मुख्यंत्री रह चुके थे ।
राजस्थान में वर्ष १९४९ में एक थानेदार जी की के दोरान म्रत्यु हो गयी थी उनकी विधवा श्रीमती लाल कंवर पारिवारिक पेंशन की हकदार थीं लेकिन उन्हें सरकार ने पेंशन नहीं दी यह विधवा अपने पति की पुलिस नोकरी का पट्टा लिए डर डर की ठोकरें खाती रही लेकिन इसे न्याय नहीं मिला आखिर इस विधवा ने राजस्थान के सभी मुख्यमंत्रियों राजनेतिक पार्टियों ने जब मुंह मोड़ लिया तो हाई कोर्ट का सहारा लिया और जयपुर हाईकोर्ट में इस मामले में मुकदमा दायर कर दिया दोस्तों इस विधवा का सफर यहीं खत्म नहीं हुआ यहाँ भी सरकार की लापरवाही से उसे तारीख पर तारीख मिलती रही लेकिन विधवा ने हिम्मत नहीं हारी और कानूनी लढाई जारी रखी कल यह पत्रावली राजस्थान हाईकोर्ट जयपुर खंड पीठ के जस्टिस रफीक साहब के हाथ में जब आई तो उन्हें ताज्जुब हुआ और उन्होंने इस विधवा को न्याय देते हुए इसकी पेंशन तुरंत देने के आदेश दिए , दोस्तों यह विधवा ६१ साल तक अपनी कानूनी पेंशन के लियें संघर्ष करती रही और इस विधवा ने अपनी जवानी के कई साल इसी लड़ाई में गंवा दिए आज यह विधवा ९२ साल की हे लेकिन ६१ साल के इस खतरनाक सफर का सुखद अंत देख कर इस विधवा लाल कंवर के चेहरे की झुर्रियों की मुस्कान देखने लायक थी , यह न्याय और सरकारी हठधर्मिता का एक किस्सा हे कई फाइलें तो सरकार और अदालत की ऐसी हें के न्याय के इन्तिज़ार में प्रार्थी की म्रत्यु हो जाने से बंद हो गयी हे लाल कंवर की इस फ़ाइल का जिस तरह से और जिस धीमी गति से निस्तारण हुआ हे उससे देश को देश की न्यायिक व्यवस्था को देश की प्रसासनिक व्यवस्था को सोचने को मजबूर होना पढ़ा हे ना जाने कितनी विधवाएं आज भी ऐसे ही अदालतों में चक्कर काट कर अपना जीवन गुज़र रही हें ............... । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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