आपका-अख्तर खान

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25 फ़रवरी 2011

एक सुबह ऐसी भी हो ....

सोचता हूँ
मेरे इस
महान देश में
एक सुबह
ऐसी भी हो
आसमान में जेसी
सूरज की
सुनहरी रौशनी होती हे
वेसी ही रौशनी
मेरे इस
भारत महान में हो
सोचता हूँ
सुबह सवेरे
खुश होकर
चिड़ियें जेसे
चह चहाती हें ,
परिंदे जेसे परवाज़ करते हें
जानवर जेसे
मदमस्त होते हें
ऐसी ही मस्ती
मेरे इस भारत महान के
हर इंसान में हो
क्या ऐसा हो सकेगा
क्या ऐसा करने में
आप और में मिलकर
कुछ कर सकेंगे
शायद नहीं
इसीलियें हर सुबह
अख़बार में
एक से एक
बढा भ्रस्ताचार
जनता के साथ लूट
महिलाओँ के साथ बलात्कार
की खबरें
प्रमुख होती हे
शायद हम सोचें
तो यह सब
बदल सकते हें
तो चलो आज
इस सुबह से
अपने इस संकल्प को
पूरा करें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान

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