तपते रेगिस्तान में
तपती रेत में
होंटों पर
पपड़ियाँ जमाए
भूखा प्यासा
सिर्फ
तेरी तलाश में
इधर उधर
भटकता रहा हूँ में
और तू आज मिली भी तो क्या
किसी और के आगोश में
खुद को
तुने छुपा रखा हे
मेरे पेरों के फफोले
मेरी आँखों के आंसू
देख ले
पानी बहा रहे हें
जख्म दिल के हों
या हों पेरों के
यूँ ही रिश्ते जा रहे हें ।
अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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