कोटा में इन दिनों कोंग्रेस या भाजपा के पार्षदों और आम जनता में एक कहावत अल्बर्ट मिनटों को गुस्सा क्यूँ आता हे बदल दी गयी हे और कहावत बनाई गयी हे के ; कोटा की महापोर रत्ना जेन को गुस्सा क्यूँ आता हे ; इस कहावत पर कुछ लोगों का कहना हे के कहावत ग़लत हे क्योंकि महापोर जी को तो हमेशा ही गुस्सा रहता हे इसलियें उन्हें गुस्सा आने का सवाल ही नहीं रहता उनकी नाक पर गुस्सा और जुबां पर तल्खी ,व्यवहार में कडवाहट तो हेमेशा ही रहती हे ऐसे में कभी कभी गुस्सा आने वाली बात गलत हे ।
महापोर रत्ना जेन जी अभी कुछ दिनों से बाहर थी और उनके पीछे से उनके ही नजदीकी समाज से जुड़े लोगों ने बूचड़ खाने को लेकर एक आन्दोलन छेड़ दिया कहा गया के रत्ना जेन और मंत्री शांति कुमार धारीवाल समाज के विपरीत विचार धारा वाले हें इसलियें इन लोगों के सडकों पर लगता र पुतले जलाए जा रहे हें कल जब महापोर साहिबा आयीं तो उन्होंने निगम के अधिकारीयों और इस से सम्बन्धित समितियों से जुड़े लोगों को फटकर लगाई के में अगर बहर थी तो तुम तो यहाँ कोटा में थे कोटा में मंत्री जी का लगातार विरोध होता रहा और कोई इस स्थिति से निपटने आगे नहीं आया महापोर जी ने कई लोगों को खरी खोटी भी सुनाई और स्पष्टीकरण दिया के इस मामले को समिति में तय किया जाएगा , देश में बूचड़ खाने बनाने का काम किसी समिति का नहीं हे किसी धर्म जाती का नहीं हे यह देश के हर जिले की जरूरत और कानूनी मजबूरी हे क्योंकि इस मामले में संविधान भी हुक्म देता हे और पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने सभी सरकारों और निकायों को बूचड़ खाने बनाने के आवश्यक निर्देश जारी किये हें । अख्तर खान अकेला कोटा राजस्थान
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